फिल्म की कहानी एक गाड़ी वाले की ज़िंदगी पर आधारित है, इनका नाम युवा चंद्रा (गंगाधरी) है, ये एक जिम्मेदार पिता के रोल में दिखाए गए हैं जो अपनी लड़की को अच्छी शिक्षा देने की कोशिश कर रहे हैं। कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब गाँव का एक मुखिया गंगाधरी पर एक सजा लगा देता है। इसकी शुरुआत तब होती है जब गाँव के मुखिया की एक पवित्र बकरी खो जाती है, और इसका इल्ज़ाम गंगाधरी पर लगा दिया जाता है।
मुखिया गंगाधरी से कहता है कि अगर उसकी बेटी की शादी न हुई तो इसका बेहद बुरा परिणाम गंगाधरी को झेलना होगा। ये फिल्म हमारे समाज में फैले अंधविश्वास और उस अंधविश्वास में डूबे लोगों को दिखाती है। पोट्टेल एक दुखभरी कहानी के साथ ही समाज की समस्याएँ भी दिखाती है, जैसे अमीर और गरीब के बीच का भेदभाव।
युवा चंद्रा (गंगाधरी) का किरदार बहुत संवेदनशील है, जो अपने प्यार और परिवार के लिए पूरी तरह से समर्पित है। कहानी ये भी दिखाती है कि एक गरीब इंसान को किस तरह से अपनी ज़िंदगी और सपनों के बीच समझौता करना पड़ता है।
प्रदर्शन
अनन्या नागल्ला का किरदार काफी प्रभावी है, जो युवा के सपनों और आत्मविश्वास दोनों को बढ़ाने का काम करता है। अजय का किरदार, जो कि एक मुखिया के रूप में दिखाया गया है, फिल्म में पूरी तरह से टेंशन बढ़ाने का काम करता है। इनका लुक और परफॉर्मेंस बहुत शानदार है। अजय अपने इस किरदार से फिल्म को एक मज़बूत एंगल देने में कामयाब रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे इन्होंने अपनी पिछली फिल्मों मट्टू वदलारा 2, देवारा में किया है।
सिनेमाटोग्राफी
फिल्म की सिनेमाटोग्राफी मनीष भूपति राजू के द्वारा की गई है, इन्होंने बहुत ही खूबसूरती से गाँव की सुंदरता और परेशानियों को एक साथ दिखाया है। कुछ इस तरह से विजुअल और सिनेमाटोग्राफी के इस्तेमाल से स्टोरी को आगे बढ़ते दिखाया गया है, जिससे फिल्म में दर्शक पूरी तरह से विलीन हो सकते हैं। लाइटिंग, कैमरा एंगल, कलर ग्रेडिंग हर एक चीज़ का अच्छे ढंग से इस्तेमाल हुआ है।
म्यूज़िक
शेखर चंद्रा का म्यूज़िक फिल्म की जान है, जो फिल्म के हर एक सीन को प्रभावी बनाता है। इनका म्यूज़िक फिल्म का माहौल बनाने में कामयाब रहा है। एक अच्छा बीजीएम वो होता है, जो कानों को ज्यादा न चुभे और डायलॉग सही से समझ आए, वो शेखर ने फिल्म में अच्छे से किया है।
पॉज़िटिव पॉइंट
ये फिल्म सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं है, बल्कि सामाजिक संदेश भी देती है। कहानी दिखाती है कि अमीर और गरीब के बीच का भेदभाव कैसे किसी की ज़िंदगी पर अपना नकारात्मक असर छोड़ता है। फिल्म के माध्यम से ये भी संदेश मिला है कि पढ़ाई-लिखाई हमारे लिए कितनी जरूरी होती है, फिर चाहे वह किसी भी परिस्थिति में क्यों न कराई जाए।
फिल्म के मेकर ने फिल्म को प्रमोट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, वो फिल्म को लेकर बहुत पॉज़िटिव हैं। प्रमोशन और सोशल मीडिया की मदद से इसका अच्छे से प्रमोशन किया गया है। अब ये तो टाइम ही बताएगा कि ये फिल्म दर्शकों के दिलों में कितना प्रभाव छोड़ती है। आईएमडीबी पर इसे 8.3 की रेटिंग दी गई है।
निगेटिव पॉइंट
कहानी के कुछ सीन इस तरह से दर्शाए गए हैं, जिन्हें आपने पहले भी कुछ फिल्मों में देख रखा है, ये देखे-देखे से लगते हैं। फिल्म में कुछ जगह पर आपको ऐसा लगेगा कि आगे ये दिखाया जाएगा और ठीक वैसा ही होता है, जो बहुत से दर्शकों के उत्साह को कम कर सकता है। दो घंटे चालीस मिनट की इस फिल्म को थोड़ा कम किया जा सकता था, कहीं-कहीं पर ऐसा लगता है कि बेमतलब फिल्म को खींचा जा रहा हो।
हमारी तरफ से इस फिल्म को पांच में से तीन स्टार दिए जाते हैं।
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