‘श्रीमती’ मलयालम फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन किचन’ का रीमेक है जो कि 2021 में मलयालम भाषा में रिलीज़ की गई थी। सबसे पहले शुक्रिया कहना चाहिए हरमन जीवेजा का क्योंकि इन्होंने कमर्शियल से हट कर एक अलग तरह की फिल्म बनाने की कोशिश की।
कहानी की शुरुआत में समझ नहीं आता कि यह लव स्टोरी है या शेफ स्टोरी पर जब कहानी थोड़ी आगे बढ़ती है तब हमें यह अहसास दिलाती है कि ये एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार में रहने वाली एक पत्नी की कहानी है।
अगर आप भी एक मिडिल क्लास वाइफ सुबह से शाम तक पूरे घर को संभालती हैं तब आप इससे अच्छे से रिलेट कर सकेंगे। फिल्म की लंबाई है 1 घंटा 51 मिनट।
कहानी शुरू होती है ऋचा शर्मा (सान्या मल्होत्रा) जो अभी जल्दी शादी कर के अपनी ससुराल में आती है। ऋचा शर्मा एक आम भारतीय पत्नी के जैसे परिवार की ज़िम्मेदारियों में इतना बंध जाती है कि उसके पास अपने लिए भी टाइम नहीं है।
अब ऋचा इस चक्रव्यूह से बाहर कैसे निकलती है क्या वो अपने सपनों को सच कर भी पाती है या नहीं यह सब आपको इस फिल्म को देख कर पता लगाना होगा जो कि ZEE5 के OTT प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध करा दी गई है।
क्या खास है फिल्म में
अगर Mrs फिल्म की तुलना मलयालम फिल्म द ग्रेट इंडियन किचन से की जाए तो यह उसके सामने थोड़ी एवरेज सी लगती है। जिस तरह से द ग्रेट इंडियन किचन में हमें चीज़ें देखने को मिली थी वह यहाँ पर थोड़ी मिस है। पर Mrs की कहानी हमारे दिमाग को हिट ज़रूर करती है डायरेक्टर ने फिल्म के माध्यम से एक खूबसूरत संदेश दिया है। फिल्म में जो भी देखने को मिलता है उसे देख कर ऐसा लगता है शायद यह हमारे घर की ही कहानी है।
पर प्रेजेंटेशन थोड़ा ओवर द टॉप है यहाँ पर जो भी चीज़ें दिखाने की कोशिश की गई है वह पहले के समय में हुआ करता था अब इस तरह की चीज़ें नहीं होती ख़ास कर के मेट्रो सिटी में तो न के बराबर होती दिखती है ,जैसे मिक्सी का इस्तेमाल न करके सिल बट्टे के इस्तेमाल के लिए फ़ोर्स किया जाए वो भी एक डॉक्टर की फैमिली में ये सब हो रहा है। वह समय दूसरा था जब औरत को महावारी के समय किचन में घुसने नहीं दिया जाता था। ऐसा नहीं है कि अब ऐसा होता नहीं है होता है पर सिर्फ गाँव में।
अगर दिखाना ही था ये सब तो इसे एक गाँव पर आधारित करके दिखाया जा सकता था न कि एक पढ़े-लिखे डॉक्टर की फैमिली के ऊपर रख कर। चलो किसी फैमिली में ऐसा होता भी है पर यहाँ पर इसके जो रिश्तेदार हैं वो भी इसी तरह की छोटी मानसिकता रखने वाले लोग हैं।
ऋचा की प्रॉब्लम तो बहुत थी पर इन प्रॉब्लम को फिल्म के अंत में बहुत तेज़ी के साथ खत्म होते दिखा दिया गया। ऋचा के सपने को पूरा करने के लिए अगर इसके स्ट्रगल को थोड़ा और दिखाया जाता तो फिल्म और भी बेहतर बन सकती थी।
निष्कर्ष
अगर आपको स्लो फिल्में देखना पसंद है तब आप इसे देख सकते हैं क्योंकि शुरुआत में कहानी अपनी रफ़्तार पकड़ने में थोड़ा टाइम लेती है। सान्या मल्होत्रा, कंवलजीत सिंह ने अच्छा काम किया है। प्रोडक्शन वर्क ठीक-ठाक है। सिनेमैटोग्राफी, म्यूज़िक भी अच्छा कहा जा सकता है। फैमिली के साथ बैठ कर न देखें तो अच्छा रहेगा। फिल्मी ड्रिप की ओर से इसे दिए जाते हैं पाँच में से ढाई स्टार।
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