निर्देशक सी. प्रेम कुमार की फिल्म मियाझागन को नेटफ्लिक्स पर हिंदी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ सहित कई भाषाओं में रिलीज़ किया गया है। सी. प्रेम कुमार ने इस फिल्म के जरिए हमें यह बताने की कोशिश की है कि ज़िंदगी को किस तरह से जिया जाए। यह फिल्म हमें हमारी ज़िंदगी का मतलब सिखाती है, कि ज़िंदगी को जीना है तो कुछ इस तरह से जियो। आखिर ऐसा क्या है कि मियाझागन ने बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई की है।
फिल्म की मुख्य कास्ट में हमें कार्ति, अरविंद स्वामी, श्री दिव्या नज़र आने वाले हैं। इस फिल्म की लंबाई लगभग ढाई घंटे के आसपास की है। महज 35 करोड़ के बजट में बनी मियाझागन ने बॉक्स ऑफिस पर 98 करोड़ का कलेक्शन किया है। अपने बजट से लगभग यह फिल्म तीन गुना का प्रॉफिट निकाल चुकी है। फिल्म में हमें चार चीज़ें देखने को मिलती हैं: प्यार, इमोशन, दोस्ती, ईमानदारी।
मियाझागन हमें सिखाती है कि जीने का मतलब और तरीका क्या होता है। सी. प्रेम कुमार ने इससे पहले विजय सेतुपति, तृषा कृष्णन की 96 जैसी शानदार फिल्म बनाई है। आईएमडीबी पर इस फिल्म को 8.2 की रेटिंग मिली है।
स्टोरी
कहानी की शुरुआत होती है अरविंद स्वामी से। अरविंद आर्थिक तंगी से जूझ रहा होता है। आर्थिक तंगी के चलते अरु को अपना घर छोड़कर अपनी पूरी फैमिली के साथ चेन्नई चला जाता है। जिस वक्त अरविंद को तंगी के कारण अपना घर बेचना पड़ता है, उसे देखकर आपकी आँखों से आंसू आ जाएंगे। अरविंद की बहुत सी यादें जुड़ी हैं उस घर से और वो उन सभी यादों को बेच रहा होता है।
कहानी में ट्विस्ट तब देखने को मिलता है जब अरविंद 22 सालों के बाद अपने घर दोबारा लौटता है। अरविंद अपनी चचेरी बहन की शादी में शामिल होने आता है, जिसे अरु बहुत प्यार करता है। इस शादी में अरु की मुलाकात मियाझागन (कार्ति) से होती है। जब इन दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो जाती है, तब स्टोरी और भी एंगेजिंग हो जाती है।
अब आपको फिल्म में बहुत से ट्विस्ट और टर्न इस तरह के देखने को मिलते हैं जो आपको थोड़ा टेंशन के साथ सुकून भी पहुंचाते हैं।
निर्देशन
आप कह सकते हैं कि निर्देशक सी. प्रेम कुमार के हाथों में एक जादू है। उन्होंने इस फिल्म को अलग और एक खास अंदाज़ में बनाया है। उनकी क्रिएटिविटी फिल्म के एक सीन में दिखती है, जहां पर फिल्म के दोनों कलाकार बियर पी रहे होते हैं और बियर पीने के बाद जिस तरह से दो दोस्त एक-दूसरे की सभी बातों को मानने लगते हैं, दो बियर पीने के बाद चार और माँगना, पीने के बाद इनका बैठना, उठना, खाना, पीना, चलने का तरीका, बात करने का लहजा, एक-दूसरे के प्रति प्यार, आदर, वो सब कुछ जिसे देखकर लगता है कि सब कुछ हमारी आँखों के सामने सच में हो रहा है।
सी. प्रेम कुमार ने फिल्म में भावनाओं का अच्छे से वर्णन किया है। एक दूसरे सीन में जब अरविंद स्वामी अपनी चचेरी बहन की शादी में गिफ्ट लेकर जाता है और उसकी बहन बोलती है कि मुझे यह गिफ्ट सबके सामने यहीं पर खोलना है, वो सीन देखकर आपका चाहे जितना भी कठोर दिल क्यों न हो, आप अपनी आँखों से आंसू रोक नहीं सकेंगे और उस वक्त आपको अपनी बहन की याद ज़रूर आएगी। डायरेक्टर ने फिल्म के जरिए एक अच्छा संदेश दिया है, जो हमें सोचने पर मजबूर करता है कि ज़िंदगी बहुत आसान है अगर इसे आसानी से जीना सीख लिया जाए तो।
मियाझागन के पॉज़िटिव पॉइंट
फिल्म की कहानी इतनी वास्तविक है कि आप खुद को इसके साथ जोड़ लेंगे। फिल्म की कहानी और इसका डायरेक्शन, स्क्रीनप्ले, हर एक चीज़ पर बहुत मेहनत की गई है। एक सीन में जब अरु अपने घर को छोड़कर जा रहा होता है, उस घर से उसकी बहुत सी यादें जुड़ी हुई होती हैं, इस सीन को देखकर आपकी आँखें नम हो जाएंगी।
फिल्म की कहानी को जितने अच्छे से लिखा गया है, उसी तरह से इसका नैरेशन भी किया गया है। पूरी फिल्म के छोटे-बड़े सीन को इतने अच्छे से समझाया गया है कि आप उसके अंदर ही जीने लग जाएंगे। फिल्म को देखते वक्त आपको ऐसा लगने लगेगा कि जो हो रहा है वो सब मेरे साथ ही हो रहा है। फिल्म में दोस्ती का एंगल देखकर आपको ऐसा लगेगा कि आपकी ज़िंदगी में भी एक ऐसा ही दोस्त होना चाहिए।
क्लाइमेक्स
फिल्म के क्लाइमेक्स में आप अपनी आँखों से आंसू रोक नहीं पाएंगे। फिल्म की कहानी को इस तरह से हमारे सामने प्रस्तुत किया गया है जो शुरू से आखिर तक आपको बोर नहीं होने देती। फिल्म के क्लाइमेक्स में वही होता है जैसा कि आप एक दर्शक होने के नाते चाहते हैं। आप जो चाहते हैं वही इस फिल्म के अंत में दिखाया जाता है। डायरेक्टर ने फिल्म के आखिरी सीन को कुछ इस तरह से दिखाया है जिसे देखने के बाद वो सीन शायद आपको आपकी सारी ज़िंदगी याद रहे। यह सीन कभी न भुलाया जाने वाला सीन बन सकता है।
डायलॉग
फिल्म के सभी डायलॉग अच्छे से लिखे गए हैं। फिल्म के कुछ डायलॉग हमें जीवन जीने की प्रेरणा देकर जाते हैं जो हमारे जीवन में बहुत काम आने वाले हैं।
निष्कर्ष
फिल्म हमें यह सिखाती है कि जो बीत गया है उसे लेकर बैठने से अच्छा है कि आगे बढ़ो। सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, पर जिस तरह की भी परिस्थिति हो, हमें अपने आप को उस परिस्थिति में ढाल लेना चाहिए। यह फिल्म पूरी तरह से एंगेजिंग है। फिल्म में हमें इंसानियत और भाईचारा देखने को मिलता है। आप इसे अपनी पूरी फैमिली के साथ बैठकर देख सकते हैं, जो आपको नेटफ्लिक्स पर हिंदी में मिल जाएगी।
इस फिल्म को देखने के बाद आपका ज़िंदगी को लेकर नज़रिया बदल जाएगा। आप हर एक मिनट को खुलकर जीने लगेंगे। रील और सोशल मीडिया वाली टेंपरेरी फेक दुनिया छोड़कर असल ज़िंदगी में खुशियाँ ढूँढने लगेंगे। आपको यह अहसास होगा कि ज़िंदगी कितनी खूबसूरत है और हम बेकार में ही परेशान होते हैं भविष्य को लेकर। यह फिल्म किसी मोटिवेशनल स्पीकर की बातों से लाख गुना अच्छी है, जो हमें कुछ सिखाकर जाती है।
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