ध्रुव सरजा की मार्टिन फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज कर दी गई है। मार्टिन का ट्रेलर बहुत आकर्षक था, पर ट्रेलर को देखकर कभी भी फिल्म का अंदाजा नहीं लगाना चाहिए। मार्टिन के साथ ठीक वैसा ही हुआ जैसा विक्की विद्या का वो वाला वीडियो के ट्रेलर के साथ हुआ था, “ट्रेलर हीरो और फिल्म जीरो”।
मार्टिन का निर्देशन ए.पी. अर्जुन ने किया है और बहुत खराब किया। ट्रेलर के समय पर बताया गया था कि फिल्म हिंदी, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, मलयालम और बंगाली में रिलीज की जाएगी।
पर अन्य भाषाओं को तो छोड़ दें, फिल्म को हिंदी में ही ठीक से रिलीज नहीं किया गया। हिंदी संस्करण में इस फिल्म को बहुत कम शो मिले। कई देशों में इस फिल्म को शो तो छोड़िए, रिलीज ही नहीं किया गया। मार्टिन, ध्रुव सरजा की पहली पैन-इंडिया फिल्म है और शायद अब ये आखिरी भी हो सकती है।
कहानी
मार्टिन के ट्रेलर को बहुत खूबसूरती के साथ हमारे सामने पेश किया गया था, जिसे देखकर ऐसा लग रहा था कि ध्रुव सरजा इस बार कुछ अलग और शानदार पेश करते नजर आएंगे। पर हुआ इसके बिल्कुल विपरीत, फिल्म में फिर से वही घिसा-पिटा भारत और पाकिस्तान का एंगल उठाया गया।
भारत का एक एजेंट है जो पाकिस्तान जाकर वहां तबाही मचा देता है। फिल्म का हर सीन इतना धीमा है कि अगर स्लो मोशन से ही फिल्में हिट होने लगीं तो फिर कंटेंट का मतलब ही क्या रह जाएगा।
भारत और पाकिस्तान पर सैकड़ों फिल्में बनाई जा चुकी हैं, और सभी फिल्में एक जैसी ही लगती हैं। दर्शक अब इस टॉपिक पर फिल्म देखना नहीं चाहते, जिसका उदाहरण हमें हाल ही में आई सलमान खान और इमरान हाशमी की टाइगर फिल्म में देखने को मिला था। टाइगर में बड़े कलाकार होने के बावजूद भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी।
पूरी फिल्म में स्लो मोशन के अलावा कुछ दिखाया ही नहीं गया है। अगर फिल्म में स्लो मोशन नहीं डाला जाता तो ये 2 घंटे 24 मिनट की न होकर डेढ़ घंटे की ही होती। स्क्रीनप्ले इतना सुस्त है कि बस इंतजार करते ही रह जाओगे कि फिल्म कब तेज होगी। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक बहुत तेज है, जो हमारे कानों को अच्छी फीलिंग नहीं देता। जहां बीजीएम की जरूरत भी नहीं है, वहां पर भी जबरदस्ती का बीजीएम डाला गया है।
फिल्म शुरू होते ही ऐसे गोल-गोल घुमाया जाता है कि समझ नहीं आता है हीरो कब पाकिस्तान में है, कब भारत में है, और ये सब इतनी जल्दी-जल्दी में हो रहा होता है कि पता ही नहीं चलता। दो मिनट में फिल्म इस्लामाबाद, दो मिनट में मुंबई, दो मिनट में हैदराबाद, दो मिनट के बाद मैंगलोर, दो मिनट में कश्मीर, फिर दो मिनट के बाद पीओके बॉर्डर, यही सब चलता रहता है पूरी फिल्म में। कन्नड़ इंडस्ट्री से आए कांतारा और केजीएफ के सामने ये कुछ भी नहीं है। असली सिनेमैटिक एक्सपीरियंस तो आपको वहां मिलने वाला है।
इस फिल्म को सिर्फ “ध्रुव सरजा” के फैन ही झेल सकते हैं, किसी आम इंसान के हिम्मत नहीं इस तरह की फिल्म को झेलने की।
वीएफएक्स
फिल्म का वीएफएक्स ठीक नहीं लगता है। सभी एक्शन सीन साफ दिखाई पड़ते हैं कि ग्रीन स्क्रीन के सामने शूट किए गए हैं। ऐसा नहीं है कि फिल्म का बजट कम हो। इस फिल्म को बनाने में पूरे 100 करोड़ खर्च किए गए। अगर थोड़ा सा पैसा वीएफएक्स पर लगा दिया जाता तो शायद कुछ परसेंट फिल्म में जान आ जाती, पर मेकर्स ने न जाने ऐसा क्यों नहीं किया। आखिर 100 करोड़ कहां खर्च किए गए? प्रोडक्शन वैल्यू देखकर नहीं लगता कि ये एक बड़े बजट की फिल्म है।
प्रदर्शन
अगर आप ध्रुव सरजा के फैन हैं या फैन नहीं भी हैं, फिल्म में ध्रुव सरजा अपनी एक्टिंग से इम्प्रेस करते नजर आते हैं। पूरी की पूरी फिल्म को ये अपने कंधों पर लेकर चले हैं। पर शायद ध्रुव सरजा अपनी एक्टिंग के बल पर फिल्म को बचा न सके क्योंकि इनकी एक्टिंग के अलावा फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है जो इस डूबते हुए जहाज को सहारा दे सके।
ये फिल्म देखी जा सकती है तो सिर्फ ध्रुव सरजा की वजह से। हम सब ध्रुव सरजा के फैन हैं और एक फैन होने की वजह से हम चाहते हैं कि ध्रुव सरजा हमें अपनी बेहतरीन फिल्मों से इंटरटेन करते रहें।
ये पांच वजह, फिल्म को कमजोर बनाने की
- कहानी
फिल्म की कहानी भारत-पाकिस्तान के बीच की है। इस मुद्दे पर पहले भी बहुत सी फिल्में बनाई जा चुकी हैं। दर्शक अब इस तरह की कहानी से ऊब चुके हैं। लोग कुछ नया देखना चाहते हैं। कहानी दर्शकों पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ती। - म्यूजिक (बीजीएम)
मार्टिन का संगीत बहुत तेज है, और जहां बैकग्राउंड म्यूजिक की आवश्यकता नहीं है, वहां भी बेवजह डाला गया है। ये बीजीएम हमारे कानों को अच्छा महसूस नहीं कराता।
टेंशन भरे डायलॉग वाले साइलेंट सीन में बैकग्राउंड म्यूजिक देना अनावश्यक होता है। इसकी वजह से डायलॉग समझने में दर्शकों को कठिनाई होती है। मार्टिन में कई जगह ऐसा किया गया है। - फिल्म का धीमा होना
मार्टिन के एक्शन सीन को बहुत ज्यादा स्लो मोशन में दिखाया गया है, जिससे कहानी में सुस्ती आ जाती है। जिस कारण दर्शकों में उत्साह की कमी देखने को मिलती है। ज्यादा स्लो मोशन में सीन को दिखाए जाने से दर्शकों को एक्शन सीन समझने में परेशानी होती है। - निर्देशन
मार्टिन का निर्देशन कमजोर है। “ए.पी. अर्जुन” से फिल्म के निर्देशन में कहीं चूक होती साफ नजर आती है। हालांकि, इन्होंने पहले अधूरी और अम्बारी
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