काजोल की फिल्म माँ पौराणिक कथाओं जिसमें डर और रोमांच को आपस में मिलाकर दिखाया गया है। माइथोलॉजिकल फिल्में वह होती हैं जिसमें देवी देवताओं राक्षसों और आत्माओं की अलौकिक शक्तियों को हॉरर के साथ दर्शाया जाता है।माँ फिल्म में काजोल माँ काली का रोल प्ले करती है,क्युकी एक टाइम ऐसा आता है जब यह अपनी बेटी को बचाने के लिए माँ काली का रूप लेती है और अपनी बेटी को शैतान से बचाती है।जिसका रन टाइम है 2 घंटे 15 मिनट का। विशाल फुरिया के निर्देशन में बनायीं गयी माँ को प्रोडूस किया है अजय देवगन और ज्योति देशपांडे ने मिलकर। यहां काजोल,रोनित रॉय,इंद्रनील सेन गुप्ता जैसे कलाकार देखने को मिलते है।
माँ की कहानी
कहानी एक ऐसे राक्षस की है, जो छोटी बच्चियों की बलि लेता है जिस वजह से वो ताकतवर होता है। इस राक्षस ने इस बार काजोल की बेटी को अपना शिकार बनाया है काजोल की बेटी इस राक्षस के कब्ज़े में है। अब किस तरह से काजोल अपनी बेटी को उस राक्षस के चंगुल से बचाने में कामयाब रहती है काजोल अपनी बेटी को बचा भी पाती है या नहीं या काजोल के द्वारा माँ काली का रूप लेने के बाद कुछ और होता है। यही सब इस फिल्म में देखने को मिलेगा। कहानी में माँ शब्द का अर्थ माइथोलॉजिकल तरह से भी समझाने की कोशिश की गयी है।
अभिनय
किसी फिल्म की स्क्रप्ट कितनी भी अच्छी क्यों न हो अगर उस फिल्म के एक्टर अच्छे से एक्टिंग नहीं करते तो फिल्म देखने में मज़ा नहीं आता। काजोल ने यहाँ शानदार काम किया है। काजोल ने माँ की ममता को जिस तरह से पेश किया है वो वाकई काबिले तारीफ है। काजोल की बेटी का रोल प्ले करने वाली खेरीन शर्मा का काम भी अच्छा है माँ इनकी डेब्यू फिल्म है।
टेक्नीकल एक्स्पेक्ट
माँ का निर्देशन विशाल फुरिया के द्वारा किया गया है विशाल ने इससे पहले लपछापी,प्राइम विडिओ की छोरी १ और छोरी २ जैसी फिल्मे बनायीं है। अगर इनकी ये फिल्मे आपने देख रक्खी है तो आसानी से समझ आयेगा के किस तरह से विशाल अपनी फिल्मो के माध्यम से अपनी चीज़ो को दर्शको के सामने रखते है।माँ में माइथोलॉजिकल हॉरर थ्रिलर के साथ-साथ एक माँ अपनी बेटी को बचाने के लिये किस हद तक लड़ सकती है इसे भी दिखाने की कोशिश की गयी है। जिस तरह से नुसरत भरुचा की छोरी फिल्म में माँ वाले एंगल को दिखाया गया था ठीक उसी तरह से यहां भी हॉरर और माइथोलॉजिकल चीज़ो को साथ में रख कर दिखाया गया है। विशाल फुरिया का निर्देशन शानदार है उन्होंने कहानी को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है।विशाल फुरिया ने पौराणिक कथाओं को सिनेमाई कला के साथ मिला कर, हॉरर और थ्रिलर तत्वों को भावनात्मक गहराई के साथ प्रभावी ढंग से पेश किया है।
वीएफएक्स
इस तरह की माइथोलॉजिकल फिल्मो में वीएफएक्स का इस्तेमाल कहानी को बांधकर हॉरर थ्रिलर वाला माहौल बनाने के लिए किया जाता है।वैसा ही कुछ वीएफएक्स यहाँ देखने को मिलता है जो बिल्कुल भी फेक फील नहीं करवाता किसी भी सीन को देख कर ऐसा नहीं लगता के यहाँ वीएफएक्स का इस्तेमाल किया गया है।साथ ही लाइटिंग और कलर ग्रेडिंग का उपयोग भी अच्छे से किया है।
क्लाइमेक्स का रहस्य
अंत के 20 मिनट सिनेमा घर की कुर्सी से आपको बांध कर रखता है। माँ वो क्लाइमेक्स देकर जाती है जिससे दर्शक पूरी तरह से अनजान होता है।यह फिल्म शैतान जैसी फिल्म के यूनिवर्स से ताल्लुक रखती है जहां एक पिता अपनी बेटी को शैतानी ताकतों से बचाता है।
म्यूज़िक
हर्ष उपाध्याय, रॉकी खन्ना और शिव मल्होत्रा का बीजीएम काफी अच्छा है यह पूरी तरह से आपको इंगेज रखता है बीजीएम के माधयम से ही कहानी आगे बढ़ती है और यह सोचने पर मज़बूर करती है के आगे क्या होने वाला है। गाने याद रहने वाले नहीं है पर जब तक आप सिनेमा घर में रहते है म्यूज़िक और गाने सुनने में अच्छे लगते है।
निष्कर्ष
काजोल की फिल्म माँ को देखा जा सकता है यहां आपका फुल पैसा वसूल होने वाला है। माँ में यहां किसी भी तरह की वल्गर या अपशब्द का इस्तेमाल नहीं हुआ है जिसे आप अपनी पूरी फैमिली के साथ बैठ कर देख सकते है।
READ MORE







