LSD 2 review by filmydrip:लव सेक्स और धोखा फिल्म को दिबाकर बैनर्जी ने बनाया है दिबाकर ने इससे पहले शुशांत सिंह राजपूत के साथ डिटेक्टिव बियोमकेश बक्शी इमरान हाश्मी और अभय देओल के साथ शंघाई जैसी फिल्मे बनाई है।अगर इनकी नई फिल्म LSD 2 की बात की जाए तो ये एक बेहद वाहियात फिल्म बनाई गई है।
इस फिल्म को देखने से पहले आप ये सोच कर जाये के आपको फिल्म के कंटेंट के नाम पर सिर्फ और सिर्फ रद्दी देखने को मिलने वाला है इससे अच्छा कंटेंट तो आज कल के यूट्यूबर बना लेते है।
मेकर के पास मूवी के नाम पर कंटेंट ही नहीं था इसी लिए इन्होने एक फिल्म में तीन तरह की वाहियात स्टोरी डाली पर सबसे अच्छी बात ये रही के तीनो स्टोरी ने एक दूसरे का पूरा साथ दिया है ख़राब कंटेंट के रूप में।
अगर बॉलीवुड में इस टाइप की फिल्मे बनने लग जाएगी तो उस हिसाब से तो शोशल मीडिया कंटेंट क्रिएटर को नेशनल अवार्ड मिलना चाहियें इनसे अच्छा कंटेंट तो हमारे शोशल मिडिया वालो के पास है। LSD 2 को देखने के लिए उतने ही लोग थियेटर में पहुंच रहे है जिनको या तो अपने पार्टनर के साथ कुछ वक़्त बिताना है और या तो a.c की मस्त ठंडी में सोना है।
LSD 2 के ट्रेलर को देख कर एक बात का तो पता लग गया था के फिल्म कैसी होने वाली है पर फिर भी दिबाकर बैनर्जी की वजह से ये फिल्म देखना का मन किया। ये एक ऐसी फिल्म है जसिकी बुराई में जितने भी वर्ड लिखे जाये वो इस फिल्म के लिए कम है। अगर आपको देखना है ये फिल्म तो देख सकते है पर अकेले जाकर फैमिली के साथ जाकर देखने लायक नहीं है ये फिल्म इस फिल्म को दिए जाते है ज़ीरो स्टार
कितनी एंगेजिंग फिल्म है
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LSD 2 बिलकुल भी एंगेजिंग नहीं कही से भी ये फिल्म आप पर अपनी पकड़ नहीं बनाती है मुश्किल से मुश्किल आप इस फिल्म को शुरू के एक घंटे तक झेल सकते है। एक नार्मल ऑडियंस को भी ये फिल्म कही से भी पसंद नहीं आने वाली है। अगर आप को एडल्ट कंटेंट देखना पसंद है तब भी आपको ये फिल्म निराश ही करने वाली है। इससे कही अच्छा कंटेंट तो आपको उल्लू टीवी पर देखने को मिल जाता है।
फिल्म ज़ादा कूल दिखाने के चक्कर में पीछे रह गयी
दिबाकर बनर्जी ने LSD 2 फिल्म को ज्यादा कूल बनाने के चक्कर में इतनी अश्लीलता डाल दी के वो भूल गए के फिल्म में सेक्स के साथ ही स्टोरी का भी रहना जरुरी है मेकर का कहना है के ये आज के जनरेशन पर बनाई गयी है पर ये फिल्म आज के जनरेशन को समझ में ही नहीं आने वाली है। फिल्म में क्लियरटी नहीं है न ही फिल्म का कोई मोटिव है न कनेक्शन नज़र आता है और न ही कोई सेगमेंट है। मेकर ने फिल्म को आर्ट बनाना चाहा है पर कही से भी ये फिल्म आर्ट नहीं लगती है। सभी एक्टरों का परफॉर्मेंस बहुत ख़राब है।