तमिल सिनेमा में नई नई प्रतिभाएं उभर रही हैं और डेब्यू डायरेक्टर तमिल धयालन ऐसी ही एक मजबूत आवाज हैं जिन पर नजर रखनी चाहिए। उनकी फिल्म “गेवी” कोडईकनाल के पास एक छोटे से गांव की जिंदगी पर आधारित है। ये फिल्म कभी कभी थोड़ी धीमी लग सकती है लेकिन इसकी ईमानदार कहानी इतना गहरा असर डालती है कि बाकी सब कुछ फीका पड़ जाता है।
मैंने इसे देखा तो लगा जैसे मैं खुद उन पहाड़ों में घूम रहा हूं, जहां जिंदगी की जद्दोजहद हर रोज की बात है। फिल्म की शुरुआत ही ऐसी है कि दिल दहल जाता है, एक भूस्खलन की वजह से गांववाले घायलों को स्ट्रेचर पर ढोते हुए अस्पताल की ओर भागते हैं।
अंधेरी रात सिर्फ टॉर्च और सोडियम लैंप की रोशनी में ये दृश्य इतना असली लगता है कि आप सोचने लगते हो,ये तो इनकी रोजमर्रा की जिंदगी है जिसमे बीमार पड़ना, मदद की गुहार लगाना, लेकिन सिस्टम से कुछ नहीं मिलना। फिर भी फिल्म सिर्फ दर्द नहीं दिखाती बल्कि गांव की खुशियां रिश्ते और संस्कृति को भी खूबसूरती से पिरोती है।

कहानी
फिल्म की आत्मा है मंधरई और मलैयन का प्यारा जोड़ा जिन्हें शीला राजकुमार और आधवन ने शानदार तरीके से निभाया है। ये दोनों अपने आने वाले बच्चे का इंतजार कर रहे हैं और उनकी जिंदगी गांव की मुश्किलों से घिरी हुई है। लेकिन निर्देशक ने इन मुश्किलों के बीच रिश्तों की नाजुकता को इतनी खूबसूरती से दिखाया है कि आप इमोशनल हो जाते हो।
जैसे वो सीन जहां बारिश में फंसकर गर्भवती पत्नी कहती है कि बारिश की बूंदें जैसे बच्चे के चुंबन हैं, और पति हंसते हुए जवाब देता है कि उसे तो लगता है बच्चा पेशाब कर रहा है, ये छोटा सा पल इतना क्यूट और पावरफुल है कि जब फिल्म वापस मौजूदा वक्त में लौटती है जहां दो जिंदगियां खतरे में हैं, तो आप महसूस करते हो कि उनकी लड़ाई सिर्फ जीने की नहीं, बल्कि इन छोटी छोटी खुशियों को बचाने की है।
गांव के हर इंसान को इतनी गहराई से लिखा गया है कि वो रियाल लगते हैं। लेकिन अफसोस, बाहर के किरदार जैसे राजनेता या पुलिस वाले एकदम सपाट और सिर्फ बुरे दिखाए गए हैं, ये फिल्म की एक कमजोरी है,फिर भी ये कहानी आपको गेवी के दुनिया में खींच ले जाती है, जैसे आप खुद वहां के हिस्से हो। मैंने देखते वक्त सोचा, कितनी फिल्में ऐसी बनती हैं जो असली भारत की तस्वीर दिखाती हैं?

सिस्टम की अनदेखी सच्चाई
गेवी सिर्फ एक कहानी नहीं बल्कि ये दिखाती है कि कैसे सत्ता के खेल में गरीबों की बगावत भी अनसुनी रह जाती है, मिडिलमैन भी सिस्टम के शिकार होते हैं ये फिल्म बखूबी उजागर करती है। गाने और लिरिक्स जैसे “ईसन सोनालुम राशन केडैकुमा” के जरिए ये सिस्टम की खराब नीतियों पर वार करती है।
ये आपको सोचने पर मजबूर कर देती है कि हमारे देश में ऐसे कितने गांव हैं जहां बुनियादी सुविधाएं सपना हैं। निर्देशक ने पावर हायरार्की को मल्टी डायमेंशनल तरीके से दिखाया है, जिसमे न सिर्फ गरीबों की लड़ाई, बल्कि ये भी कि कैसे ये लड़ाई ऊपर वालों के लिए महज एक आवाज है।
मैंने इसे देखकर महसूस किया कि ये फिल्म उन अनदेखे लोगों की आवाज है जो पहाड़ों में खो जाते हैं। अगर आप सोशल इश्यूज पर बानी फिल्में देखना पसंद करते हो, तो ये आपके लिए परफेक्ट है।
सिनेमेटोग्राफी और विजुअल्स:
फिल्म की असली ताकत है इसकी शूटिंग जिसे सिनेमेटोग्राफर जगन जया सूर्या को सलाम, शुरुआती सीन में जब गांववाले भूस्खलन के शिकार को शोक मनाते हैं, कैमरा दूर जाकर एरियल व्यू कैप्चर करता है, बस एक छोटा सा स्पॉट पहाड़ों के विशालकाय फैलाव में जहां ये लोग अकेले अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
An Emotional Thriller #Gevi Now Running Successfully In Theaters pic.twitter.com/zyhAf5egse
— Trendswood (@Trendswoodcom) July 21, 2025
ये इमेज इतनी बोलती है कि शब्दों की जरूरत नहीं पड़ती ये दिखाती है कितने अनसुने और अनदेखे हैं ये लोग। हर फ्रेम कहानी की रॉनेस को बढ़ाता है जैसे पीली रोशनी वाली रातें या पहाड़ों की चुनौतियां। मुझे लगा जैसे कैमरा खुद एक साइलेंट ऑब्जर्वर है, जो इनकी जिंदगी की हकीकत को कैद कर रहा है।
मजबूती और कमजोरियां:
कुल मिलाकर, गेवी एक प्रभावशाली फिल्म है जो धीमे पेस के बावजूद आपका ध्यान बांधे रखती है। इसकी ईमानदारी और सोशल मैसेज इसे खास बनाते हैं, हां बाहर के किरदारों का लेखन थोड़ी निराशा देता है लेकिन गांववालों की डेप्थ इसे बैलेंस कर देती है।
#Gevi In Cinemas From Tomorrow pic.twitter.com/Y8i3WaAyJu
— Trendswood (@Trendswoodcom) July 17, 2025
अगर आप रियलिस्टिक सिनेमा पसंद करते हो तो इसे जरूर देखो। मेरे हिसाब से ये उन फिल्मों में से एक है जो आपको लंबे वक्त तक याद रहती हैं।
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