यह एक स्पोर्ट ड्रामा फिल्म है जिसे 10 अप्रैल, 2025 को सिनेमा घरों में रिलीज़ किया गया था। अलाप्पुझा जिमखाना का निर्देशन किया गया है खालिद रहमान के द्वारा और इसके कलाकारों में देखने को मिलते हैं नास्लेन के. गफूर, लुकमान अवरन, गणपति एस. पोडुवल, संदीप प्रदीप।
अब फाइनली मलयालम सिनेमा के हिंदी प्रेमियों का इंतज़ार को खत्म करते हुए मेकर्स ने इसके ओटीटी रिलीज़ के साथ ही ओटीटी प्लेटफॉर्म की घोषणा कर दी है। आइए जानते हैं कब और किस ओटीटी पर स्ट्रीम की जानी है अलाप्पुझा जिमखाना।
अलाप्पुझा जिमखाना हिंदी डब्ड ओटीटी रिलीज़
अलाप्पुझा जिमखाना फिल्म को अगर आपने सिनेमा घरों में देखने से मिस कर दिया था तो अब आपका इंतज़ार खत्म होता है। गर्मी की शाम में घर पर ही बैठकर आप आराम से इस फिल्म का मज़ा ले सकते हैं। अलाप्पुझा जिमखाना को सोनी लिव के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर स्ट्रीम करवाया जाएगा। यह फिल्म आपको सोनी लिव पर 13 जून से मलयालम, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ के साथ ही हिंदी में भी उपलब्ध करवा दी जाएगी।
कैसी है यह फिल्म
यह एक मलयालम स्पोर्ट ड्रामा कॉमेडी फिल्म है। खालिद रहमान की अगर बात की जाए तो खालिद ने अपने फिल्मी करियर में अभी तक टोटल पांच फिल्मों का निर्देशन किया है।खालिद रहमान की पांचों फिल्में देखने के बाद एक बात तो पता लग गई कि खालिद अपनी हर फिल्म एक जैसी नहीं बनाते। यह अपनी फिल्मों में कुछ अलग करना चाहते हैं।हर बार अपनी फिल्म को नए जॉनर के साथ पेश करते हैं। यह एक स्वीट सिंपल और डिफरेंट फिल्म है।
फिल्म के क्लाइमेक्स में न ही कोई ट्विस्ट है न ही क्लिफहैंगर छोड़ा गया है पर फिर भी सभी कैरेक्टर्स को लेकर के अब इनकी ज़िंदगी में आगे क्या होगा इसको लेकर हमारे मन में जिज्ञासा हो जाती है। खालिद रहमान के बाद अगर यह फिल्म देखी जा सकती है तो वो है फिल्म के मुख्य एक्टर नास्लेन। जिस तरह से इन्होंने खुद को यहाँ पेश किया है वह हर कोई नहीं कर सकता। नास्लेन का किरदार हीरो की तरह न दिखाकर मेकर्स ने अपनी क्रिएटिविटी को दिखाया है।

किस तरह से यह कैरेक्टर अपनी गलतियों को समझता है और अंत तक अपने अंदर छिपी हुई काबिलियत को भी पहचान जाता है।किसी भी गेम की हार जीत उस टीम की होती है न कि सिर्फ टीम के कप्तान की। खालिद रहमान ने बॉक्सिंग गेम में भी टीम को महत्व दिया है।
क्रिस्टोफर नाम का कैरेक्टर हसाता है, गुदगुदाता है। फिल्म में मेंटल फिजिकल एंगर पर बात की गई है। सभी कैरेक्टर्स को देख रियल फील आता है। ऐसा नहीं लगता कि हम कोई फिल्म देख रहे हों बल्कि ऐसा लगता है कि जो भी हो रहा है वो हमारे सामने ही हो रहा है। इसका पहला हिस्सा ठीक-ठाक है तो वहीं दूसरा हिस्सा काफी एंगेजिंग है। म्यूज़िक, कैमरा वर्क, सिनेमैटोग्राफी, सब कुछ अच्छा है।’
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