7 मार्च 2025 का दिन भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के लिए काफी खास रहा। जब कई फिल्में एक साथ सिनेमाघरों में रिलीज हुईं,इनमें हिंदी,तमिल,तेलुगू और मलयालम भाषाओं की फिल्में शामिल थीं।
इतनी सारी फिल्में एक साथ आने की वजह से हर फिल्म को देख पाना तो मुमकिन नहीं था। इसलिए हमने आज समय निकालकर मलयालम सिनेमा की फिल्म “परिवार” को देखा। जैसा कि नाम से ही जाहिर है यह फिल्म परिवार के इर्द गिर्द घूमती है और ऐसा ही इसमें देखने को भी मिलता है।
परिवार का डायरेक्शन उलसव राजीव और फहद नंदू ने किया है। यह एक कॉमेडी ड्रामा जॉनर की फिल्म है,जिसमें जगदीश,इंद्रंस,एलेक्जेंडर प्रशांत और मोट्टई राजेंद्रन जैसे शानदार कलाकार नजर आते हैं। तो चलिए जानते हैं कि क्या है इस फिल्म की कहानी और करते हैं इसका डिटेल रिव्यू।
कहानी
फिल्म की कहानी ‘हस्तिनापुर’ नाम के एक शहर में सेट की गई है, जहाँ ‘भास्करेत्तन’ नाम का एक बुजुर्ग व्यक्ति रहता है। वह एक रसूखदार परिवार से ताल्लुक रखता है। लेकिन अब उसकी उम्र काफी हो चुकी है और उसका परिवार उसकी मौत का इंतजार कर रहा है।
भास्करेत्तन ने अपनी जिंदगी में दो शादियाँ की थीं, जिनसे उसे कुल पाँच बच्चे हुए। बचपन से ही उसे महाभारत से गहरा लगाव था,इसलिए उसने अपने बच्चों के नाम भी महाभारत के किरदारों से प्रेरित होकर रखे जिनमें भीम,शेष,सहदेव,नकुल और धर्मेंद्र। इनमें से धर्मेंद्र अब इस दुनिया में नहीं है उसकी मौत एक हाथी के नीचे आने से हो गई थी।
कहानी का मुख्य केंद्र वह कीमती अंगूठी है जो भास्करेत्तन के पास है। वह इसे अपनी यादगार के तौर पर संभालकर रखना चाहता है। लेकिन उसके बेटे और उनकी पत्नियाँ इस अंगूठी को बेचकर मालामाल होने के सपने देखते हैं।
ये सभी लालची लोग उसकी मौत का इंतजार इसलिए कर रहे हैं, ताकि यह अंगूठी उनके हाथ लग सके। अब सवाल यह है कि क्या ये लोग इस अंगूठी के लिए भास्करेत्तन की जान ले लेंगे? कहानी में आगे एक बहुत बड़ा ट्विस्ट भी आता है जिसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
फिल्म की कमियाँ:
“परिवार” की सबसे बड़ी कमी इसकी कहानी है। यह कॉन्सेप्ट पहले भी साउथ और हिंदी फिल्मों में कई बार देखा जा चुका है,इसमें कोई खास नयापन नहीं है,जिसके चलते दर्शक इसे नजरअंदाज कर सकते हैं।
दूसरी कमी इसके किरदारों के नाम हैं। महाभारत के पात्रों के नाम पर आधारित ये नाम सुनने में काफी बनावटी और अटपटे लगते हैं। भीम,शेष,सहदेव,नकुल जैसे नाम कहानी में जबरदस्ती ठूंसे हुए से प्रतीत होते हैं।
तीसरी बड़ी खामी इसकी पटकथा का तार्किक न होना है। भास्करेत्तन को पता है कि उसके बेटे उसकी जान लेना चाहते हैं,फिर भी वह न तो पुलिस में शिकायत करता है और न ही किसी पड़ोसी से मदद माँगता है। यह एक बड़ी कमजोरी है,जिस पर लेखक को ध्यान देना चाहिए था। कहानी में तर्क की कमी इसे कमजोर बनाती है।
फिल्म की अच्छाइयाँ:
परिवार की अच्छी बातों की शुरुआत इसके कलाकारों से होती है। सभी एक्टर्स ने अपनी एक्टिंग से कमाल कर दिखाया है। भले ही कहानी नई न हो लेकिन इनकी परफॉर्मेंस आपको परिवार को आखिर तक देखने के लिए मजबूर करती है।
खास तौर पर मोट्टई राजेंद्रन जिन्होंने एक बेटे का किरदार निभाया है उनकी एक्टिंग लाजवाब है। उन्होंने साबित कर दिया कि वह अपने अभिनय के दम पर दर्शकों को प्रभावित कर सकते हैं।
डायरेक्शन की बात करें तो उलसव राजीव और फहद नंदू ने सटीक काम किया है। फिल्म को कॉमेडी और ड्रामा का बैलेंस देने की कोशिश साफ नजर आती है, जो कई जगह कामयाब भी होती है।
निष्कर्ष:
अगर आपको कॉमेडी ड्रामा फिल्में पसंद हैं और पुराने कॉन्सेप्ट से आपको कोई खास परहेज नहीं है,तो मलयालम सिनेमा की “परिवार” आपके लिए एक बढ़िया ऑप्शन हो सकती है। फिलहाल यह फिल्म सिर्फ मलयालम भाषा में सिनेमाघरों में रिलीज हुई है।
लेकिन जल्द ही इसे हिंदी डबिंग के साथ ओटीटी प्लेटफॉर्म्स जैसे अमेजन प्राइम वीडियो या जियोहॉटस्टार पर देखा जा सकेगा। यह फिल्म आपको कुछ हद तक मनोरंजन दे सकती है,लेकिन कुछ नया या फिर यादगार देने में यह पीछे रह जाती है।
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