शुक्रवार 29 अगस्त के दिन बॉलीवुड फिल्म ‘ये है मेरा वतन’ (Yeh Hai Mera Watan) सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी, लेकिन इसे काफी कम स्क्रीन पर रिलीज किया गया था, जिसके कारण अब जाकर मैंने यह फिल्म थिएटर में देखी है। फिल्म का डायरेक्शन मुश्ताक पाशा ने किया है, साथ ही इन्होंने मूवी में एक अहम किरदार भी निभाया है।
वहीं फिल्म में मौजूद अन्य महत्वपूर्ण कलाकारों की बात करें तो इनमें अथर हबीब, मृदुला महाजन और यशपाल शर्मा हैं। मूवी के जॉनर की बात करें तो यह क्राइम और ड्रामा कैटेगरी के अंतर्गत आती है, वहीं इस फिल्म की लंबाई एक घंटा 50 मिनट की है। चलिए बात करते हैं फिल्म की कहानी के बारे में और करते हैं इसका डिटेल रिव्यू।
स्टोरी:
फिल्म की कहानी शुरू होती है पाकिस्तान के कराची शहर से, जहां पर हमारी इंडियन सेना पाकिस्तान के आतंकी हमले का ताबड़तोड़ जवाब देती हुई दिखाई देती है। तभी अगले ही सीन में सियालकोट, जो कि पाकिस्तान में स्थित है, दिखाया जाता है, जहां पर इस फिल्म के हीरो और हीरोइन चोरी-छुपे मिलते हैं। फिल्म के हीरो का नाम मुजाहिद है,

यह किरदार खुद डायरेक्टर मुश्ताक पाशा ने निभाया है, तो वहीं हीरोइन का किरदार मृदुला महाजन निभाती हुई दिखाई देती हैं, जिनका फिल्म में नाम नहीं बताया गया है, केवल उन्हें ‘हीर’ कह कर बुलाया जाता है। इन दोनों प्रेमी जोड़ी की मुलाकात के दौरान मुजाहिद की मां वहां पर आ जाती हैं, जिनसे बचने के लिए मुजाहिद और हीर दोनों ही पास में मौजूद एक कुएं में कूद जाते हैं।
फिल्म का यह सीन काफी अच्छा है, क्योंकि इसी दौरान मुजाहिद की मां और हीर की मां दोनों वहां पर आ जाती हैं, जिस कारण यह सीन पूरी तरह से हास्य आत्मक रूप ले लेता है। इसके बाद कहानी आगे बढ़ती है और हमें पता चलता है कि हीर का एक भाई भी है, जिसका नाम इमरान भट्ट है और वह एक काफी इस्लामिक इंसान है जो कि इस्लाम धर्म का अच्छी तरह से पालन करता है। यही कारण है कि इमरान काफी लंबे-लंबे समय तक घर से बाहर रहता है,

क्योंकि उसे आए दिन ‘इस्तेमा’ में जाना होता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो इस्लाम धर्म के ज्ञानी लोग करते हैं, जिससे वह अलग-अलग जगह पर जाकर इस्लाम के बारे में बता सके और जागरूकता फैला सके। हालांकि इस बार जब इमरान इस्तेमा के लिए निकलता है, तब वह 3-4 दिन के लिए नहीं बल्कि पूरे 40 दिन का ‘चिल्ला’ खींचता है,
जिसका मतलब यह है कि अब वह पूरे 40 दिन के बाद ही घर वापस लौटेगा। यह जानकर इमरान की मां काफी सदमे में चली जाती है, और तभी उसकी मुलाकात अपनी बचपन की दोस्त और होने वाली पत्नी जमीला से होती है, जो कि उसे रोकने की कोशिश करती है लेकिन वह एक नहीं सुनता। कहानी आगे बढ़ती है और एक काफी दिलचस्प मोड़ लेती है,
क्योंकि इस बार इमरान इस्लाम धर्म को फैलाने नहीं बल्कि एक टेररिस्ट बेस कैंप में गया है, जोकि पाकिस्तान में स्थित एक जगह ‘खोखा बाद’ में मौजूद है, जहां पर इमरान की मुलाकात अफजल नाम के एक आतंकी ग्रुप के सरगना से होती है, जो कि इमरान को फिदायन बनने के लिए तैयार करता है। यहां मैं आपको बता दूं,
फिदाइन शब्द का मतलब यह होता है कि जब कोई इंसान खुद की बॉडी पर बम लगाकर लोगों के बीच जाकर उनकी जान ले ले, उस हमले को फिदाइन हमला कहते हैं। वहीं दूसरी ओर हमें दिखाया जाता है कि हीर की मां उसके लिए रिश्ता ढूंढ रही है जो कि काफी बड़े घराने का हो और इसके लिए वह ‘करीमन बुआ’ नाम की एक औरत का भी सहारा लेती है, जो हीर के लिए अच्छा रिश्ता ढूंढ सके।

और इसी कशमकश के चलते मुजाहिद एक काफी बड़ा कदम उठा लेता है, क्योंकि उसे हीर से शादी तो करनी होती है लेकिन वह काफी गरीब परिवार से है और अगर उसे शादी करनी है तो उसे खूब सारा पैसा चाहिए। अब क्या मुजाहिद और हीर की शादी हो सकेगी?
या फिर वह बड़ा कदम क्या है जो मुजाहिद ने उठाया है? और दूसरी तरफ इमरान भट्ट जो कि अब अपना भेष बदलकर सुरेश जैन बन चुका है, क्या वह भारत जाकर लोगों की जान ले लेगा? इसी पर आगे की कहानी टिकी हुई है, जिसे जानने के लिए आपको देखनी होगी फिल्म ‘यह है मेरा वतन’।
कैसा है फिल्म का डायरेक्शन:
डायरेक्टर मुश्ताक पाशा ने इससे पहले भी तीन फिल्में निर्देशित की हैं, जिनमें साल 2006 में आई फिल्म ‘मैं तू अस्सी तुस्सी ‘, साल 2013 में आई फिल्म ‘वियाह 70 KM’, और 2018 में आई मूवी ‘बंजारा – द ट्रक ड्राइवर’ शामिल हैं, जिससे एक बात तो पूरी तरह से साफ हो जाती है कि मुश्ताक को डायरेक्शन का अच्छा अनुभव है, जो कि उनकी फिल्म में दिखाई भी देता है।
हालांकि फिल्म का बजट काफी कम होने के कारण वह इसके हर एक सीन में साफ झलकता भी है, लेकिन फिर भी इतने कम बजट में इस तरह के गंभीर और बड़े मुद्दे को लेकर फिल्म बनाना मामूली बात नहीं है, जिसके लिए मैं उनके डायरेक्शन की सराहना करता हूं।
फिल्म के कमजोर पक्ष:
- जैसे कि मैंने बताया, फिल्म का बजट काफी कम था, जो कि इसके हर एक सीन में दिखाई देता है, फिर चाहे वह इसकी शूटिंग हो या फिर फिल्म में मौजूद कलाकारों के द्वारा बोले गए डायलॉग, हर एक चीज में बजट की कमी दिखाई देती है।
- फिल्म की कहानी में टेररिस्ट वाला एंगल काफी कम दिखाया गया है, जिसे मेरे हिसाब से थोड़ा और ज्यादा बेहतर तरीके से दिखाया जाना चाहिए था, जिसमें इमरान की आतंकी ट्रेनिंग और हिंदुस्तानी भाषा सीखने जैसी चीज दिखाई जानी चाहिए थी, क्योंकि पाकिस्तान के लोगों के लिए बिना सीखे हिंदी बोलना मुमकिन नहीं है।
- इसकी अगली बड़ी कमी है कि इसमें हीर और मुजाहिद, जो कि इस फिल्म के मुख्य कलाकार यानी हीरो-हीरोइन हैं, लेकिन उनका एक साथ फिल्म के अंदर काफी कम स्क्रीन टाइम दिया गया है, जोकि इसे देखते वक्त थोड़ा खलता जरूर है।
फिल्म के पॉजिटिव पहलू:
- फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष है इसकी कहानी, जो कि काफी कम बजट में बनी होने के बावजूद भी बहुत कुछ कह जाती है, जैसे कि हर एक आतंकवादी बनने के पीछे कोई ना कोई मजबूरी छुपी होती है।
- वहीं फिल्म की अगली अच्छी चीज की बात करें तो वह है हीर के रोल में नजर आई मृदुला महाजन की एक्टिंग और मुश्ताक पाशा की डायलॉग डिलीवरी।
- मूवी की लंबाई काफी कम है, जो कि एक काफी अच्छी बात है जिससे इसे देखने का एक्सपीरियंस और भी बेहतर हो जाता है, क्योंकि फिल्म कब शुरू और कब खत्म होती है आपको पता ही नहीं चलता।
निष्कर्ष:
मुश्ताक पाशा की फिल्म ‘यह है मेरा वतन’ एक डिसेंट वन टाइम वॉच फिल्म है, जोकि ‘बॉर्डर’ और ‘गदर’ जैसी बिल्कुल भी नहीं है। फिल्म कम बजट में बनाई गयी है जोकि साफ दिखाई देता है, इसलिए इससे बहुत ज्यादा उम्मीदें लगाना बेहतर नहीं होगा। अगर आप उसी तरह की ऑडियंस हैं जिन्हें फिल्म की टेक्निकल नॉलेज नहीं है या फिर देखते वक्त ज्यादा डीप थिंक नहीं करते, तो यह फिल्म आप एक बार जरूर देख सकते हैं। मेरी रेटिंग रहेगी: 3/5
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