एक फिक्शनल कॉमेडी ड्रामा फिल्म, जिसे प्राइम वीडियो के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ किया गया है। उप्पु कप्पुरमबु को तेलुगु, तमिल, कन्नड़, और मलयालम के साथ-साथ हिंदी में भी रिलीज़ किया गया है। फिल्म का निर्देशन किया है एनी आई.वी. शशि ने। आइए करते हैं फिल्म का पूरा रिव्यू शायद हमारा यह रिव्यू आपकी फिल्म देखने में मदद करे।
कहानी
फिल्म के सूत्रधार शुरुआत में ही इसके बारे में बताते हैं कि यह चित्ती जयपुरम नाम के एक काल्पनिक गांव की कहानी है। पुराने समय में एक राज्य हुआ करता था जिस पर राजा द्वारा शासन किया जाता था। एक बार इस पूरे राज्य में अकाल पड़ गया। इस गांव में 3 साल तक बारिश की एक भी बूंद नहीं पड़ी।

लोग बदहवास होकर मरने लगे। तभी राजा के गुरु ने राजा से कहा “इस जमीन ने हम गांव वालों को सब कुछ दिया है पर हम गांव वालों ने जमीन के लिए क्या किया हमें इस धरती ने ही जन्म दिया है। अब गांव में मरने वाले हर व्यक्ति को इस धरती के अंदर ही दफनाया जाएगा।
इसके बाद यह परंपरा बन गई कि हर मरने वाले इंसान को गांव की जमीन में ही दफनाया जाए चाहे वह किसी भी जाति, मजहब, या धर्म का हो। इसके बाद राज्य में मूसलाधार बारिश हुई जिससे खूब फसलें उगीं और खुशहाली आई। कुछ समय बाद उस राज्य के लोग अलग अलग गांवों में जाकर बसने लगे। इसी राज्य से कुछ लोग चित्ती जयपुरम नाम के एक गांव में आकर बस गए और अपनी पुरानी परंपराओं को चलाते रहे। अब इस गांव में भी मरने वालों को दफनाया जाता है जलाया नहीं जाता।
फिल्म का इंट्रोडक्शन खत्म होने के बाद गांव के प्रधान की मृत्यु दिखाई गई है जिन्हें दफनाया जाता है। अब उनके स्थान पर गांव के प्रधान की लड़की को नया प्रधान बनाना है। प्रधान की लड़की का कॉन्फिडेंस कमजोर है। गांव वालों को लगता है कि वह मुखिया बनने के लायक नहीं। इसी गांव में चिट्ठी नाम का एक लड़का है जो लोगों को दफनाने का काम करता है।
कहानी का ट्विस्ट यह है कि गांव में दफनाने के लिए जमीन कम हो गई है। अब सिर्फ चार लोगों के लिए जमीन बाकी है। गांव वालों को मरने से ज्यादा चिंता दफनाने की है। सभी चाहते हैं कि मरने के बाद उन्हें इसी जमीन में दफनाया जाए। अब जब गांव में और मौतें शुरू होती हैं, तब गांव की नई प्रधान अपूर्वा इसका क्या समाधान करती है, यही सब आगे इस फिल्म में देखने को मिलता है।
फिल्म के पॉजिटिव पॉइंट्स

फिल्म का सबसे पहला पॉजिटिव पॉइंट है इसकी हिंदी डबिंग जो जबरदस्त है। इसे देखते समय बिल्कुल भी नहीं लगता कि हम कोई तेलुगु फिल्म देख रहे हैं। भोली-भाली सीधी-सादी अपूर्वा के किरदार से आपको प्यार हो जाएगा। वहीं चट्ठी का किरदार भी अपूर्वा की तरह ही सीधा-सादा लड़का है।
फिल्म के नेगेटिव पॉइंट्स
स्क्रीनप्ले काफी कमजोर है। एक अच्छी कहानी होने के बावजूद इसे ठीक से पेश नहीं किया गया जिस कारण कहानी काफी खींची हुई लगने लगती है। मेकर ने फिल्म में अपनी पूरी कोशिश की पर वह सही से परफॉर्म नहीं कर सका। कॉमेडी सीन भी उस तरह से प्रभावी नहीं दिखते। फिल्म का धीमा होना ही अपने आप में इसकी सबसे बड़ी कमी है।
निष्कर्ष
इस हफ्ते आई फिल्में और वेब सीरीज अगर आपने देख ली हैं और अब देखने के लिए कुछ नहीं है तब आप इसे एक बार अपना समय दे सकते हैं वह भी बहुत कम अपेक्षाओं के साथ। मेरी तरफ से इसे दी जाती है पांच में से ढाई स्टार की रेटिंग।
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