फिल्म ‘सो लॉन्ग वैली’ को मन सिंह ने डायरेक्ट किया है और ये उनकी खुद की कहानी पर बेस्ड है। फिल्म की शूटिंग मनाली की खूबसूरत लोकेशन्स में हुई है, जो इसे एक अलग सा फील देती है। ये फिल्म उन लोगों के लिए परफेक्ट है जो क्राइम थ्रिलर्स फिल्में देखना पसंद करते हैं, जहां हर मोड़ पर टेंशन बनी रहती है।
मैंने देखा कि ये फिल्म होस्टेज सिचुएशन को बखूबी परदे पर रखती है साथ ही फिल्म की कहानी काफी दमदार है। अगर आप ‘दृश्यम’ या ‘अंधाधुन’ जैसी फिल्में देखना पसंद करते हैं, तो सो लॉन्ग वैली आपको निराश नहीं करेगी। फिल्म की रिलीज के बाद से ही सोशल मीडिया पर इसके ट्विस्ट की चर्चा हो रही है, और ये साल की बेस्ट थ्रिलर्स में से एक मानी जा रही है।
कहानी: गुमशुदा लड़की
कहानी शुरू होती है एक डरी हुई लड़की से, जो अपनी बहन की तलाश में बेहाल स्थिति में मनाली पुलिस स्टेशन पहुंचती है। और पुलिस ऑफिसर्स को बताती है की उसकी बहन शिमला से मनाली जा रही थी, लेकिन रस्ते में लहिन गायब हो गयी और अब तक घर नहीं पहुंची है।

तभी आनन फानन में पुलिस की जांच शुरू होती है और एक कैब ड्राइवर पर शक किया जाता है, लेकिन जैसे जैसे जांच आगे बढ़ती है, कुछ चौंकाने वाले राज खुलते हैं। क्या ये सिर्फ एक अपहरण था, या इसके पीछे कोई बड़ा खेल चल रहा था? कौन असली मास्टरमाइंड है? ये सवाल आपको फिल्म के आखिर तक बांधे रखेंगे।
फिल्म की कहानी सीधी लगती है लेकिन इसमें सस्पेंस धीरे धीरे बनता है। मुझे लगा कि ये क्लासिक थ्रिलर्स से अलग है, जहां फोकस अपराधी की पहचान पर कम और उसकी मोटिव पर ज्यादा है। क्या पीड़ित लड़की अंत में जिंदा बचेगी? ये टेंशन फिल्म की जान है।
कुल मिलाकर स्क्रिप्ट टाइट है और दो घंटे से थोड़ी ज्यादा रनटाइम में ये बिना बोर किए खत्म होती है। फिल्म में कोई भी गाने नहीं हैं जो एक काफी अच्छी बात है, क्योंकि ये स्टोरी को डिस्टर्ब नहीं करते।
कलाकारों ने दिल जीता
अब बात करते हैं परफॉर्मेंस की इसमें त्रिधा चौधरी ने इंस्पेक्टर सुमन नेगी का रोल किया है और वो कमाल की लगीं हैं, उनकी एक्टिंग में वो ग्रिट और डिटरमिनेशन है, जो एक पुलिस ऑफिसर को सूट करता है। दर्शकों को उनकी मेहनत साफ नजर आती है।

अकांक्षा पुरी ने रिया का किरदार निभाया है, जो कमजोर होने के साथ साथ मजबूत भी दिखती है, उनकी वल्नरेबिलिटी ऑथेंटिक लगती है। अलिशा परवीन बहन के रोल में फिट बैठीं हैं उनकी चिंता भरी एक्टिंग ने फिल्म को रियल फील दिया है। विक्रम कोचर कैब ड्राइवर कुलदीप के रूप में स्टैंडआउट हैं उनका गुस्सैल और अनप्रेडिक्टेबल अंदाज फिल्म को मज़बूती देता है।
और खुद डायरेक्टर मन सिंह ने इंस्पेक्टर देव का रोल किया है, जो स्क्रीन पर काफी इंगेजिंग लगे हैं,बाकी सबकी एक्टिंग भी काफी नैचुरल है जो फिल्म की अपील बढ़ाती है,मैंने नोटिस किया कि ये कलाकार छोटे बजट की फिल्म में भी बड़े स्टार्स जैसा इम्पैक्ट देते हैं।
निर्देशन, सिनेमेटोग्राफ और सेटिंग की खूबियां
मन सिंह का डायरेक्शन फिल्म में साफ झलकता है, हर फ्रेम में मनाली की खूबसूरती कैद है, जिसमे ठंडी पहाड़ियां, कोहरे वाली सड़कें और बारिश भरी शामें शामिल हैं, सिनेमेटोग्राफर श्रीकांत पटनायक ने इसे खूबसूरती से कैप्चर किया है, जो डार्क स्टोरी के साथ कंट्रास्ट बनाता है।
ये लोकेशन्स फिल्म को एक ईरी फील देती हैं, जैसे हिमाचल की वादियां खुद अपने अंदर रहस्य छिपाये बैठी हों। डायलॉग्स और स्टोरी राइटिंग भी शानदार है, जो इसे यादगार बनाती है। मुझे लगा कि निर्देशक ने अपनी पर्सनैलिटी को फिल्म में डाला है, जो इसे और भी यूनिक बनाता है।
कमियां: सुधार की गुंजाइश है
हर फिल्म परफेक्ट नहीं होती और ये भी नहीं है, बजट ज़्यादा न होने फिल्म का स्केल छोटा लगता है, कम कैरेक्टर्स और लोकेशन्स की वजह से ये कभी कभी चैंबर ड्रामा जैसी फील होती है। बैकग्राउंड स्कोर थोड़ा ज्यादा लाउड है, जो टेंशन को जबरदस्ती थोपता लगता है,
थ्रिलर्स में सबटिलिटी जरूरी है और यहां वो थोड़ी कम है। पेसिंग धीमी है जिससे कुछ सीन में टेंशन पीक नहीं कर पाती है,लेकिन क्लाइमेक्स में एक बड़ा ट्विस्ट आता है, जो सबकुछ बदल देता है और सिनेमाघरों से बहार निकलने के बाद भी ‘सो लॉन्ग वैली मूवी को ज़हन में यादगार बना देता है।
निष्कर्ष:
कुल मिलाकर ‘सो लॉन्ग वैली’ साल की बेहतरीन क्राइम थ्रिलर्स में से एक है, अगर आप सस्पेंस और क्राइम के फैन हैं, तो जरूर देखें। ये फिल्म दर्शाती है कि छोटे बजट में भी कमाल की फिल्म बनाई जा सकती है। फिल्मीड्रिप रेटिंग: 3.5/5
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