यह एक तमिल भाषा की ड्रामा और कॉमेडी फिल्म है। इस फिल्म का निर्देशन किया है एम. एस. राजा ने। 12 जनवरी को रिलीज़ हुई यह फिल्म अब ओटीटी पर उपलब्ध करा दी गई है। आइए जानते हैं कि इस फिल्म में क्या है खास और क्या यह हमें देखनी चाहिए या नहीं, जानते हैं अपने इस रिव्यू के माध्यम से।
कहानी
कहानी है एक छोटे से बच्चे कुमरन (श्रवण अथ्वेथन) की, जिसके पास है एक मुर्गी का बच्चा। कुमरन को अपने इस मुर्गी के बच्चे से बहुत प्यार है। वह ज्यादातर समय इसी बच्चे के साथ बिताता है। कहानी में जब सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा होता है, तभी यहाँ एक ट्विस्ट आता है, जब कुमरन की मुर्गी अचानक इसके घर से गायब हो जाती है। अब यह कुमरन की सेवाप्पी नाम की मुर्गी आखिर कहाँ चली गई है, मिल भी पाती है या नहीं, यही सब आपको इस फिल्म में आगे देखने को मिलेगा, जातिवाद और भेदभाव जैसी चीजों के साथ। यहाँ बच्चे का जानवर के लिए प्यार दिखाना बहुत सादगी भरा है, जो दर्शाता है कि जानवर हो या इंसान, सभी से एक समान प्यार करना चाहिए। बहुत सारे इमोशनल सीन्स के साथ आप इसे हिंदी डबिंग में अब देख सकते हैं।
पॉजिटिव और निगेटिव
90 के दशक को उजागर करती इस फिल्म का स्क्रीनप्ले काफी कमजोर है, जो दर्शकों को बोर करता है। फिल्म के अंदर निर्देशक ने बहुत से ऐसे सीन डाले हैं, जिन्हें देखकर साफ जाहिर होता है कि इन सीन्स की फिल्म में बहुत जरूरत नहीं थी। यह ओवर ड्रामैटिक जैसा फील देती है। यह फिल्म उन्हें बहुत पसंद आएगी, जिन्हें गाँव की कहानी देखना पसंद है या गाँव को देखना अच्छा लगता है। यहाँ ऐसा कुछ नहीं दिखाया गया, जिसे देखकर वाह मूवमेंट आए। कहानी को और अच्छा बनाया जा सकता था, पर शायद मेकर्स के पास उतना बजट नहीं था कि वे इसे बेहतर बना पाते। डायलॉग और सभी एक्टर्स की एक्टिंग काफी अच्छी है, पर एडिटिंग उतनी ही निराश करती है। जिस तरह इस गाँव के अंदर जातिवाद, भेदभाव, ऊँच-नीच को दर्शाया गया है, इस तरह के सीन पहले भी कई फिल्मों में देखने को मिल चुके हैं।
निष्कर्ष
अगर आपको गाँव के परिवेश में बनने वाली फिल्में देखना पसंद है, तब आप इस फिल्म को अपना समय दे सकते हैं, पर बहुत कम अपेक्षाओं के साथ। बहुत ज्यादा उम्मीदों के साथ अगर यह फिल्म देखी, तो हाथ में सिर्फ निराशा ही लगने वाली है। मेरी तरफ से इसे दी जाती है 5 में से 2.5 स्टार की रेटिंग।
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