Sarzameen Movie Review 2025: एक ऐसी फिल्म की जो कश्मीर की खूबसूरत वादियों में सेट है, लेकिन कहानी इतनी इंटेंस है कि आपकी आंखें नम हो सकती हैं। जी हां, मैं बात कर रहा हूं “सरजमीन” मूवी की, जो आज 25 जुलाई 2025 को ओटीटी प्लेटफॉर्म जियोहॉटस्टार पर रिलीज हुई है। ये फिल्म हिंदी के अलावा पांच अन्य भाषाओं में भी उपलब्ध है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देख सकें।
डायरेक्टर हैं बोमन ईरानी के बेटे कायोज ईरानी, और ये उनकी डेब्यू फिल्म है। मुख्य भूमिकाओं में हैं तमिल सिनेमा के सुपरस्टार पृथ्वीराज सुकुमारन, बॉलीवुड की क्वीन काजोल, और सैफ अली खान के बेटे इब्राहिम अली खान। ये इब्राहिम की करियर की दूसरी फिल्म है और यकीन मानिए, उन्होंने इसमें काफी अच्छा काम किया है।
मैंने ये फिल्म देखी है, और बतौर एक फिल्म लवर जो सालों से बॉलीवुड और रीजनल सिनेमा को फॉलो करता हूं, मुझे लगता है कि ये रिव्यू आपको फिल्म देखने का फैसला लेने में मदद करेगा। चलिए स्टेप बाय स्टेप इसकी कहानी, अच्छाइयों, कमियों और बाकी चीजों पर बात करते हैं। मैं अपनी राय पूरी ईमानदारी से दे रहा हूं, क्योंकि मैंने कई कश्मीर बेस्ड फिल्में देखी हैं, जैसे “हैदर” या “द कश्मीर फाइल्स” और ये उनसे थोड़ी अलग है।

फिल्म की कहानी: एक आर्मी ऑफिसर की जिंदगी में आया तूफान
फिल्म की शुरुआत होती है आर्मी ऑफिसर विजय मेनन से, जिनका रोल पृथ्वीराज सुकुमारन ने निभाया है। विजय एक सख्त और देशभक्त आर्मी ऑफिसर हैं, जिनकी पोस्टिंग कश्मीर में है। उनके परिवार में पत्नी मेहर मेनन (काजोल) और बेटा हरमन मेनन (इब्राहिम अली खान) है। मोहसिन को स्टैमरिंग की समस्या है, यानी वो बोलते वक्त हकलाता है, जो उसके लिए काफी मुश्किलें पैदा करता है। फिल्म की कहानी कश्मीर के बैकड्रॉप में है, जहां विजय को आतंकवादियों से रोजाना मुठभेड़ करनी पड़ती है।
कहानी में बड़ा ट्विस्ट आता है जब विजय को एक आतंकी ग्रुप के बारे में पता चलता है। ये ग्रुप कश्मीर में बम धमाके करके वहां की शांति बहाल करने का दावा करता है, लेकिन असल में ये आतंक फैला रहे हैं। एक ऑपरेशन के दौरान विजय और उनकी टीम मोहसिन और उसके भाई,यानी दो आतंकियों को गिरफ्तार करती है। इन्हें टॉर्चर करने के बावजूद वो अपना मुंह नहीं खोलते, न ही अपने प्लान बताते हैं।

फिर आता है फिल्म का सबसे इमोशनल पार्ट। आतंकियों के कुछ साथी विजय के घर के पास एक फर्जी कैंटीन सेट करते हैं और विजय के बेटे को किडनैप कर लेते हैं। बदले में वो मांगते हैं कि गिरफ्तार आतंकियों को रिहा किया जाए। विजय के सामने मुश्किल फैसला है- देश की सुरक्षा या बेटे की जान?
लेकिन विजय कहते हैं “सरजमीन की सलामती से बढ़कर कुछ नहीं, चाहे मेरा बेटा ही क्यों न हो” ये डायलॉग इतना पावरफुल है कि सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन इसी से कहानी में ट्विस्ट आता है, विजय का बेटा हरमन, उसी आतंकी ग्रुप में शामिल हो जाता है, 8 साल बाद वो घर लौटता है लेकिन अब उसका नाम हारिस है और उसकी स्टैमरिंग भी गायब हो चुकी है साथ ही अब वो खाना भी चम्मच के बजाए हाथों से खाता है।
अब पूरी फिल्म इसी सस्पेंस पर टिकी है- क्या हरमन अब भी भारत का है, या वो आतंकियों के साथ मिल गया है? बाप-बेटे के बीच शक की दीवार खड़ी हो जाती है, और मेहर (काजोल) बीच में फंस जाती है। कहानी काफी इमोशनल है और कश्मीर के मुद्दे को फैमिली ड्रामा के साथ मिक्स किया गया है।

मुझे लगता है कि डायरेक्टर कायोज ने इसे अच्छे से हैंडल किया है, क्योंकि ये सिर्फ एक्शन नहीं, बल्कि रिलेशनशिप्स पर फोकस करती है। अगर आपने “बॉर्डर” या “उरी” जैसी फिल्में देखी हैं, तो ये उससे थोड़ी अलग है, यहां पर्सनल स्ट्रगल ज्यादा है।
पॉजिटिव पॉइंट्स: क्या चीजें बनाती हैं इसे देखने लायक?
सबसे पहले तो विजुअल्स की बात करूं– कश्मीर की खूबसूरती को इतने अच्छे से कैप्चर किया गया है कि लगता है आप वहां हैं। बर्फीली पहाड़ियां, हरी-भरी वादियां और बीच में एक्शन सीन्स, सब कुछ परफेक्ट। पृथ्वीराज सुकुमारन का रफ-टफ आर्मी ऑफिसर लुक कमाल का है। वो तमिल सिनेमा से हैं लेकिन यहां बॉलीवुड में भी फिट बैठे। काजोल मां के रोल में जान डाल देती हैं उनकी आंखों में दर्द और प्यार साफ दिखता है।
इब्राहिम अली खान, जो ये उनकी दूसरी फिल्म है, ने स्टैमरिंग वाले लड़के से लेकर ट्रेंड आतंकी तक का ट्रांसफॉर्मेशन शानदार तरीके से दिखाया है। बोमन ईरानी भी आर्मी ऑफिसर के छोटे रोल में ठीक हैं, हालांकि उनका स्क्रीन टाइम कम है।

फिल्म का प्लस पॉइंट ये है कि ये कश्मीर के मुद्दे को नए तरीके से दिखाती है, न सिर्फ एक्शन, बल्कि इमोशंस और फैमिली बॉन्ड्स पर फोकस। 2025 में ऐसी फिल्म कम ही आ रही हैं क्योंकि पहले जी नेटवर्क वाली फिल्में इस टॉपिक पर फ्लॉप हो चुकी हैं। लेकिन यहां एग्जीक्यूशन अच्छा है और ये दर्शकों को इंप्रेस करने में कामयाब होती है। मैंने इसे देखते वक्त महसूस किया कि ये रियल लगती है, जैसे असली घटनाओं से इंस्पायर्ड हो।
कमजोर पक्ष: जहां फिल्म थोड़ी कमजोर पड़ती है
हर फिल्म में कुछ कमियां होती हैं और सरजमीन में भी हैं। एक सीन है जहां विजय पहले तो आतंकियों की डील मान लेता है और एक्सचेंज पॉइंट पर पहुंचता है। लेकिन अचानक वो उन पर गोलियां बरसाने लगता है। ये देशभक्ति का जज्बा अचानक जगना थोड़ा अजीब लगता है जैसे स्क्रिप्ट में जल्दबाजी हो गई हो।
कहानी में कुछ प्लॉट होल्स भी हैं, जैसे बेटे का नाम हारिस कैसे बदलता है, वो थोड़ा कन्फ्यूजिंग है। साथ ही फिल्म थोड़ी लंबी लग सकती है, खासकर सस्पेंस पार्ट में। अगर आप एक्शन लवर हैं, तो शायद इमोशंस ज्यादा लगें, लेकिन कुल मिलाकर ये बड़ी कमियां नहीं हैं।
A son is a mother’s strength — but what if that strength turns into her weakness?#Sarzameen, releasing July 25, only on #JioHotstar#SarzameenOnJioHotstar pic.twitter.com/IMItME3sRU
— JioHotstar Malayalam (@JioHotstarMal) July 24, 2025
सिनेमैटोग्राफी और म्यूजिक: जो फिल्म को लिफ्ट करते हैं
सिनेमैटोग्राफी स्वप्निल सोनावने ने की है, और ये लाजवाब है। कश्मीर की वादियों को इतने खूबसूरत तरीके से दिखाया है कि डार्क थीम होने के बावजूद फिल्म ब्राइट लगती है। आतंकी माहौल को भी बिना ज्यादा हिंसा दिखाए कैप्चर किया गया है, जो सराहनीय है।
म्यूजिक की बात करें तो विशाल मिश्रा ने कमाल किया है। बैकग्राउंड स्कोर हर सीन के साथ फिट बैठता है – न ज्यादा लाउड, न ज्यादा सॉफ्ट। फिल्म में सिर्फ दो गाने हैं: एक कव्वाली “मेरे मुर्शीद मेरे यारा” जो सिचुएशनल है, और दूसरा “आज रुक जा” ये गाना इतना इमोशनल है कि सुनकर आंसू आ जाते हैं, ये फैमिली के दर्द को परफेक्टली कैप्चर करता है। कुल मिलाकर म्यूजिक फिल्म को और मजबूत बनाता है।
निष्कर्ष: क्या देखनी चाहिए सरजमीन?
2025 में कश्मीर पर बनी फिल्में कम हो गई हैं, क्योंकि पहले वाली ज्यादातर फ्लॉप हुईं। लेकिन सरजमीन नई जनरेशन के हिसाब से बनाई गई है अच्छी स्क्रिप्ट, शानदार परफॉर्मेंस और इमोशनल डेप्थ। मुझे ये काफी इंप्रेस कर गई खासकर इब्राहिम और पृथ्वीराज की केमिस्ट्री। अगर आप फैमिली ड्रामा और सस्पेंस पसंद करते हैं, तो जरूर देखें, ये ओटीटी पर है तो घर बैठे एंजॉय कर सकते हैं।
फिल्मीड्रिप रेटिंग: 3.5/5
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