सुकुमार के निर्देशन में बनी आज से लगभग 7 साल पहले राम चरण की रंगस्थलम फिल्म को रिलीज़ किया गया। अब सात सालों के बाद हिंदी डबिंग में इसे टीवी प्रीमियर किया गया। इसके मुख्य कलाकारों में राम चरण के साथ सामंथा अक्किनेनी, आधी पिनिसेट्टी और जगपति बाबू जैसे और भी कलाकार दिखाई देंगे। तो चलिए पता करते हैं कि क्या है इस फिल्म में खास और क्यों लोग इसकी हिंदी डबिंग के लिए उत्साहित थे।
कहानी
कहानी 1980 के दशक के एक गांव की है जहां राम चरण चित्ती बाबू के किरदार में दिखाई दे रहे हैं, जिसे थोड़ा कम सुनाई देता है। यह एक मेहनती किसान है जो रंगस्थलम नाम के गांव में खेती-बाड़ी करके अपनी ज़िंदगी अच्छे से चला रहा होता है। चित्ती बाबू को लक्ष्मी नाम की लड़की से प्यार भी हो जाता है, जिसके किरदार में सामंथा हैं। पर हर फिल्म की तरह यहां पर भी जब सब कुछ ठीक चल रहा होता है, तब अचानक से कहानी अपना रंग बदलती है।
इसी गांव में रहता है जगपति बाबू, जो गरीबों पर अन्याय-अत्याचार करता है। गरीब गांव वाले इसके अत्याचार से काफी परेशान हैं। तब इसके विरुद्ध खड़ा होता है चित्ती बाबू, वह इसके अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाता है। गांव के लोगों को जगपति बाबू से न्याय दिलाने के लिए इसका भाई चुनाव में इसे चुनौती देता है, जो कि एक पढ़ा-लिखा, समझदार, अन्याय के खिलाफ लड़ने वाला इंसान है। अब आगे कहानी में बहुत ट्विस्ट देखने को मिलते हैं, जिनको जानने के लिए आपको यह फिल्म देखनी होगी।
पॉजिटिव और निगेटिव पॉइंट
शायद दर्शकों को इसकी कहानी कुछ खास न लग रही हो, पर कहानी जिस तरह पेश की गई है, वह इसे यूनिक बनाने का काम करती है। गांव और जमीन से जुड़ी यह कहानी एक बार देखने बैठेंगे तो अंत तक ही सांस भरेंगे। मुझे ऐसा लगता है कि रंगस्थलम फिल्म को राम चरण की बेस्ट परफॉर्मेंस वाली फिल्म कहा जा सकता है। इसका सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है इसका परफॉर्मेंस। परफॉर्मेंस इस तरह से किया गया है कि राम चरण ने शायद ही किसी फिल्म में ऐसा किया हो। हर कुछ समय बाद कहानी में भर-भर के ट्विस्ट और टर्न देखने को मिलते हैं। क्लाइमेक्स ऐसा है कि भूलाए न भूल सकने वाला। फिल्म के हर एक किरदार से निर्देशक ने निचोड़ कर एक्टिंग करवाई है।
वो कहते हैं न कि अगर निर्देशक अच्छा हो तो कहानी कैसी भी हो, वह उसे जान डाल सकता है। ऐसा ही कुछ रंगस्थलम के साथ हुआ। होता भी क्यों न, इसके निर्देशन में सुकुमार जो हैं, जिन्होंने पुष्पा जैसी फिल्में बनाई हैं। इनके निर्देशन में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं दिखती, फिर चाहे वह सिनेमैटोग्राफी हो, बीजीएम हो, एडिटिंग हो या कास्टिंग, सब कुछ परफेक्ट होता है। मेरी नज़र में यह फिल्म पुष्पा से कम नहीं है। बस आपको फिल्म के शुरुआती चरण शायद स्लो लगें, पर जब यह रफ्तार पकड़ती है तो बुलेट ट्रेन भी इससे पीछे दिखाई पड़ती है।
फिल्म के बारे में एक और मज़ेदार बात यह है कि उस समय इसका बजट लगभग 60 करोड़ का था और इसने बॉक्स ऑफिस पर 216 करोड़ रुपये का कारोबार करके व्यवसायिक रूप से कामयाब रही थी। तीन घंटे की इस फिल्म के दूसरे भाग में थोड़ा मेलोड्रामा कुछ ज़्यादा ही देखने को मिलता है। निगेटिव पॉइंट की बात की जाए तो यह फिल्म आज से सात साल पहले आई थी, तो यहां थोड़ा ओल्ड वाली फील आती है। क्योंकि आज के समय में फिल्म मेकिंग पूरी तरह से बदल गई है। VFX, CGI का इस्तेमाल बहुत बड़े स्तर पर किया जाने लगा है।
निष्कर्ष
फिल्म को हिंदी डबिंग में रिलीज़ करने में मेकर्स ने सात सालों का समय ले लिया। अभी भी यह फिल्म हिंदी डबिंग में OTT पर उपलब्ध नहीं है, पर हो सकता है टीवी प्रीमियर के बाद अब इसे प्राइम या जियो हॉटस्टार पर हिंदी में उपलब्ध करवाया जाए। एक बढ़िया कास्ट के साथ यह फिल्म एक बार तो देखी जा सकती है, वो भी पूरे परिवार के साथ बैठकर। मेरी तरफ से इसे दिए जाते हैं 5 में से 3.5 स्टार की रेटिंग।
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