आजकल बॉलीवुड में नए निर्देशकों की एंट्री हो रही है, और उनमें से एक हैं कम उम्र के डेब्यू डायरेक्टर अर्नब चटर्जी। उनकी पहली फिल्म ‘मर्डरबाद‘ एक ऐसी कहानी लेकर आई है जो रोमांस, रहस्य और सस्पेंस का मिश्रण है। फिल्म की कहानी जयपुर के एक टूर गाइड के इर्द गिर्द घूमती है, जो एक एनआरआई लड़की से प्यार करता है, लेकिन अचानक एक पर्यटक के गायब होने से सब कुछ उलट पुलट हो जाता है।
मैंने ये फिल्म देखी है और बतौर फिल्म क्रिटिक, जो पिछले कई साल से बॉलीवुड की फिल्मों पर नजर रखता हूं, मैं कह सकता हूं कि ये एक महत्वाकांक्षी कोशिश है, लेकिन पूरी तरह सफल नहीं हो पाई। फिल्म में जयपुर की खूबसूरत लोकेशन्स और कुछ अच्छे ट्विस्ट हैं लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट और एडिटिंग की वजह से ये अपनी क्षमता का पूरा फायदा नहीं उठा पाती।
The trailer of #Murderbaad is OUT NOW!
— Sumit Kadel (@SumitkadeI) July 7, 2025
A twisted tale of love and thrill. Film will be hitting cinemas on 18th July 2025.
Starring #NakulRoshanSahdev, #KanikkaKapur, #SharibHashmi, #ManishChaudhari & #SaloniBatra.
A #RelianceEntertainment presentation- written, produced &… pic.twitter.com/oyeIFHEpoj
अगर आप थ्रिलर पसंद करते हैं, तो ये देखने लायक है, लेकिन उम्मीदें ज्यादा न रखें। चलिए इस रिव्यू में हम फिल्म के हर पहलू पर बात करेंगे ताकि आप खुद तय कर सकें कि ये आपके लिए है या नहीं।
कहानी
फिल्म की कहानी काफी दिलचस्प लगती है शुरुआत में मुख्य किरदार जयश मदनानी (नकुल रोशन सहदेव) है, जो हाल ही में जयपुर आया है और टूर गाइड की नौकरी पकड़ता है, उसकी पहली ही ग्रुप टूर में एक पर्यटक गायब हो जाता है और जयश मुख्य संदिग्ध बन जाता है।
इसी बीच, वो एक एनआरआई लड़की से रोमांस करता है, लेकिन पर्यटक के गायब होने के बाद सब कुछ बिखर जाता है। जयश खुद गायब हो जाता है और फिर पूरे देश में उसकी तलाश शुरू हो जाती है। इस तलाश में कई राज खुलते हैं, जो सच्चाई को उलट पुलट कर देते हैं और दर्शकों की सारी धारणाएं तोड़ देते हैं।

ये प्लॉट सुनने में तो बड़ा रोमांचक लगता है, जैसे कोई क्लासिक व्होडुनिट मिस्ट्री हो,लेकिन असल में, फिल्म की कहानी में कई ढीले सिरे हैं। शुरुआती हिस्सा अच्छा है, जहां जयपुर की महलों और बाजारों की खूबसूरती दिखाई गई है, लेकिन जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है, कुछ ट्विस्ट इतने अनुमानित लगते हैं कि सस्पेंस कमजोर पड़ जाता है।
मैंने सोचा था कि ये फिल्म ‘दृश्यम‘ या ‘अंधाधुन’ जैसी बन सकती थी, लेकिन यहां रोमांस वाला हिस्सा थ्रिलर को कभी कभी साइडलाइन कर देता है। कुल मिलाकर, कहानी में पोटेंशियल था, लेकिन एक्जीक्यूशन में कमी रह गई। अगर आप ऐसी फिल्में देखते हैं जहां जगह जगह रहस्य छिपे हों, तो ये आपको थोड़ा बहुत बांधेगी, लेकिन अंत तक पहुंचते पहुंचते थकान सी महसूस होगी।
मजबूत परफॉर्मेंस जो फिल्म को संभालती हैं
फिल्म की सबसे बड़ी ताकत इसके कलाकार हैं इनमे नकुल रोशन सहदेव ने जयश के रोल में कमाल किया है। वो कमजोर और धोखेबाज दोनों ही पक्षों को इतनी अच्छी तरह निभाते हैं कि आप उनके किरदार पर शक करते रहते हैं। उनकी और कनिका कपूर (इजाबेल) के बीच की केमिस्ट्री काफी नेचुरल लगती है क्योंकि रोमांटिक सीन में वो दोनों एकदम असली जोड़ी जैसे लगते हैं,

हालांकि कभी कभी ये रोमांस थ्रिलर की रफ्तार को धीमा कर देता है। शारिब हाशमी तो स्टैंडआउट परफॉर्मर हैं, उनका रोल दिल को छूता है और टेंशन भी क्रिएट करता है,खासकर सलोनी बत्रा के साथ उनके सीन में वो गजब की गहराई लाते हैं। लेकिन अफसोस, स्क्रिप्ट ने सलोनी बत्रा और मनीष चौधरी (जो जांच अधिकारी का रोल करते हैं) को ज्यादा मौका नहीं दिया।
दोनों ही अच्छे एक्टर हैं, लेकिन उनके किरदार इतने डेवलप नहीं हुए कि वो अंत तक याद रहें। मैंने नोटिस किया कि नए एक्टर्स को डेब्यू फिल्मों में अक्सर ऐसी समस्या आती है, जहां स्क्रिप्ट की वजह से उनका टैलेंट वेस्ट हो जाता है। कुल मिलाकर, अगर फिल्म देखने लायक है तो इन परफॉर्मेंस की वजह से। ये वो हिस्सा है जहां डायरेक्टर की नई सोच झलकती है, और ये साबित करता है कि अच्छे एक्टर्स किसी भी कमजोर स्क्रिप्ट को थोड़ा बहुत बचा सकते हैं।
निर्देशन और लेखन
अर्नब चटर्जी की ये पहली फिल्म है और वो सिर्फ टीनएज में हैं,ये अपने आप में सराहनीय है। उन्होंने एक ऐसी कहानी बुनी है जो दर्शकों को उत्सुक रखती है, लेकिन अनुभव की कमी साफ दिखती है। फिल्म का सेकंड हाफ थोड़ा तेज होता है, कुछ असली ट्विस्ट आते हैं, लेकिन ओवरऑल स्टोरीटेलिंग में शार्पनेस की कमी है।

लेखन में कई लूज एंड्स हैं, जैसे कुछ सब प्लॉट जो कहीं नहीं जाते और रिवील्स जो ज्यादा सरप्राइजिंग नहीं लगते। मैं कहता हूं कि अगर एडिटिंग थोड़ी टाइट होती, तो फिल्म ज्यादा इम्पैक्टफुल बन सकती थी। डेब्यू डायरेक्टर्स अक्सर अपनी महत्वाकांक्षा में ज्यादा एलिमेंट्स डाल देते हैं और यहां भी वही हुआ।
लेकिन क्रेडिट देना पड़ेगा कि चटर्जी ने रोमांस और क्राइम को मिक्स करने की अच्छी कोशिश की है। आने वाले समय में अगर वो अपने इस अनुभव से सीखेंगे, तो उनकी फिल्में ज्यादा ग्रिपिंग बन सकती हैं। बॉलीवुड में ऐसे कई उदाहरण हैं जैसे अनुराग कश्यप की पहली फिल्मों से लेकर अब तक का सफर।
खूबसूरती के साथ कमियां
फिल्म की विजुअल अपील अच्छी है, जयपुर की राजसी सुंदरता और पश्चिम बंगाल के शांत टोन का कंट्रास्ट देखने लायक है। ये लोकेशन्स कहानी में गहराई जोड़ती हैं, जैसे जयपुर की गलियां रहस्य छिपाती लगती हैं। लेकिन कैमरावर्क में समस्या है,कई महत्वपूर्ण सीन में शेकी फ्रेम्स हैं, जो इमर्शन की बजाय डिस्ट्रैक्ट करती हैं।
साउंड और बैकग्राउंड म्यूजिक ठीक है लेकिन वो भी कुछ जगहों पर ओवरड्रामैटिक लगता है। अगर तकनीकी टीम थोड़ी मजबूत होती, तो फिल्म का ओवरऑल फील बेहतर होता। मैंने कई इंडिपेंडेंट फिल्मों में देखा है कि बजट की कमी से ऐसे इश्यू आते हैं, लेकिन यहां ये फिल्म की कमजोरी बन गई।
Wishing the entire team behind #Murderbaad (Hindi) all the success! May this film captivate hearts and achieve great heights at the box. pic.twitter.com/oF7WntAUkq
— VICTORY CINEMA (@Victory_Cinema) July 18, 2025
निष्कर्ष: एक मिस्ड ऑपर्च्युनिटी
कुल मिलाकर, ‘मर्डरबाद’ एक ईमानदार कोशिश है जो क्राइम थ्रिलर स्पेस में अपनी जगह बनाने की कोशिश करती है। ये उन फिल्मों में से है जो पोटेंशियल तो दिखाती हैं, लेकिन पॉलिश की कमी से पीछे रह जाती हैं। अगर आप नए डायरेक्टर्स को सपोर्ट करना चाहते हैं, तो जरूर देखें, ये आपको उत्सुक रखेगी।
लेकिन अगर टाइट स्क्रिप्ट और शार्प ट्विस्ट वाली थ्रिलर चाहते हैं, तो शायद निराश होंगे। अर्नब चटर्जी के लिए ये शुरुआत है और मुझे उम्मीद है कि आगे वो और बेहतर करेंगे। रेटिंग की बात करें तो मैं इसे 2.5/5 दूंगा।
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