२०२२ में रिलीज़ हुई कांतारा फिल्म का बजट मात्र १६ करोड़ रुपये था। सैकनिल्क के अनुसार कांतारा ने वर्ड वाइड ₹ 407.82 करोड़ भारत नेट कलेक्शन ₹ 309.64 करोड़ भारत ग्रॉस कलेक्शन 363.82 करोड़ रूपये ओवरसीज 44 करोड़ रूपये का कलेक्शन कर के बोलोकबस्टर फिल्म बनी। एक कम बजट की फिल्म जिसमें न कोई बड़ा स्टार, न ही प्रमोशन, न ही हाइप, कांतारा के पास थी बस एक यूनिक कहानी और लोकल गाँव के कल्चर के साथ निर्देशक-एक्टर ऋषभ शेट्टी का जुनून विजन सपना जिसे उन्होंने पूरा करने का ठाना था। गाँव के देवता भूतकोला और जमीन से जुड़ी कहानी ने इसे एक अलग तरह से पेश किया। अब २०२५ में कांतारा चैप्टर १ जो कि कांतारा का प्रीक्वल है आइए जानते हैं क्या कहती है इस कांतारा चैप्टर वन की कहानी।
कहानी
ज्यादातर ऐसा देखा गया है कि जब किसी फिल्म का सीक्वल या प्रीक्वल आता है तब उस फिल्म से दर्शक कुछ ज्यादा ही उम्मीदें लगा लेते हैं। और ऐसा ही कुछ कांतारा के साथ भी होता दिखा जहाँ पहले भाग को देखकर ऐसा लगता है कि ऋषभ शेट्टी को इस प्रोजेक्ट पर काम नहीं करना था। पर फिल्म के पहले हिस्से के खत्म होने के बाद दूसरे हिस्से में दिखाए जाने वाले कुछ सीन जिन्हें देखकर एक बात तो साफ़ ज़ाहिर होती है कि इन्हें फिल्माना इतना आसान नहीं रहा होगा। बस वही से कांतारा चैप्टर वन बनती है, दिमाग के होश उड़ा देने वाली एक मास्टरपीस फिल्म। फिल्म का क्लाइमेक्स शानदार था जो भावनाओं रोमांच और सिनेमैटोग्राफी का बेहतरीन मिश्रण है।
कांतारा चैप्टर वन की शुरुआत वही से होती है जहाँ से कांतारा को खत्म किया गया था। बस यहाँ ये समझाने की कोशिश की गई है कि कांतारा यूनिवर्स की शुरुआत कहाँ से हुई थी। मतलब कि २०२२ में रिलीज़ हुई कांतारा फिल्म के पहले की कहानी। लगान, स्वदेश, पंचायत जैसी वेबसीरीज जिस तरह गाँव से लेकर शहर तक के लोगों को पसंद आई थी, ठीक उसी तरह से इसकी कहानी भी गाँव और शहर के दर्शकों दोनों को पूरी तरह से कनेक्ट करती है।
परफॉर्मेंस
कांतारा में ऋषभ शेट्टी के किरदार शंकरू ने जिस तरह से दर्शकों के दिलों में एक अलग सी जगह बनाई थी जिस तरह से यह देवता के किरदार में जंगल में खड़े होकर घूरते थे इसे देख ऐसा लगता था मानो सिनेमा का पर्दा फाड़कर सामने खड़े हैं। ठीक उसी तरह से इनके डायलॉग में कन्नड़ फिल्मों का असली स्वाद चखने को मिल रहा है। फिल्म देखते समय ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इन्होंने अपनी आत्मा के साथ अपना खून भी फिल्म के अंदर डाला हो।
रुक्मिणी वसंत का किरदार भी ठीक है। ठीक का मतलब इन्हें सिर्फ़ फिल्म हीरोइन के तौर पर नहीं लिया गया है बल्कि रुक्मिणी एक प्रभावी किरदार में हैं। गुलशन देवैया के बारे में तो कहने की कुछ ज़रूरत नहीं है सब जानते हैं कि ये अपनी हर फिल्म में अलग एक्सपेरिमेंट करते दिखाई देते हैं। जयराम का काम भी सराहनीय है।
टेक्निकल
कांतारा की बात की जाए तो टेक्निकल समीक्षा करना ज़रूरी हो जाता है। चैप्टर वन को टेक्निकली इस तरह से पेश किया गया है, जिसे देखकर एक बात तो साफ़ ज़ाहिर होती है कि मेकर का जितना भी बजट था उसने उस बजट को बिल्कुल सही तरह से इस्तेमाल किया है।
सिनेमैटोग्राफी
जंगल के हर एक सीन को ऐसे दिखाया गया है जैसे मानो किसी पेंटर की पेंटिंग बनी हुई हो। फेस्टिवल सीन ऐसे हैं, जिन्हें देखते समय मन में एक बार तो आता है कि काश हम भी इस फेस्टिवल का हिस्सा होते। कांतारा की आत्मा जब ऋषभ के जिस्म में समाती है, वह सीन सिनेमा घर को एक नए रंग में रंगने का काम करता है।
कैमरा वर्क
वाइड शॉट्स में ऋषभ के दो रूपों को बहुत ही बेहतरीन तरह से पेश किया गया है। भूतकोला के हर एक सीन कैमरा एंगल की वजह से रोंगटे खड़े करने वाले हैं।
लाइटिंग
लाइटिंग का खेल भी यहाँ अपने आप में कमाल है, जहाँ सूरज की सुनहरी किरणों से लेकर रात के रहस्यमयी अंधेरे तक, हर सीन में चैप्टर वन बिल्कुल परफेक्ट।
कलर ग्रेडिंग
चाहे भूतकोला की रहस्यमयी वाइब्स हों या फिर जंगल की मिट्टी, दिन की रौशनी में गाँव की खूबसूरती में, कलर ग्रेडिंग इस सिनेमा में एक नया रंग भरने के काम आती है। खासकर क्लाइमेक्स के सीन में कलर का बहुत अच्छे से इस्तेमाल हुआ है, जिससे अंत के सीन दिमाग में अलग छाप छोड़कर जाते हैं।
वीएफएक्स
ऋषभ ट्रांसफॉर्मेशन सीन से लेकर टाइगर वाला सीन में वीएफएक्स टॉप नॉच हैं। फिल्म के सभी वीएफएक्स सीन आश्चर्यचकित करने का काम करते हैं, जो कि असल दुनिया के साथ मेल भी खाते हैं। यहाँ अलौकिक या पौराणिक तत्वों में अच्छे ढंग से वीएफएक्स का इस्तेमाल हुआ है।
म्यूज़िक
अजनीश के बीजीएम ने हर एक सीन में गहराई डालने का काम किया है। म्यूज़िक ने एक सिम्पल से सीन को भी ऐसा बनाया है जो यादगार बनता है। कांतारा में दिखाया गया वराह रूपम जैसा ही यहाँ एक और गाना है, जो सबकी ज़ुबान पर चढ़ने वाला है।
क्लाइमेक्स
पूरा तीस मिनट का क्लाइमेक्स पैसा वसूल है।
कांतारा चैप्टर वन के वीक पॉइंट
इंटरवल के पहले की फिल्म का नैरेशन स्लो है, जहाँ बहुत पेशेंस रखने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे कुछ दूसरे हिस्से में कहीं-कहीं पर दो-चार सीन देखने को मिलते हैं। पर मेकर ने क्लाइमेक्स को पावरफुल दिखाकर अगली-पिछली गलतियों को माफ़ कराने पर मजबूर कर दिया।
निष्कर्ष
जिन लोगों ने कांतारा देखी थी, उनके लिए यह फिल्म किसी सेलिब्रेशन से कम नहीं है। सिनेमा घर में लोग सीटियाँ-तालियाँ बजाने से नहीं थकते। इस तरह के माहौल में फिल्म देखकर मज़ा आता है, जो हमें फील कराता है कि यही सिनेमा है और यही आज के दौर में एक दर्शक देखना चाहता है। पॉजिटिव वर्ड ऑफ माउथ कलेक्शन में इज़ाफा करेगा। ये एक फिल्म नहीं है, इमोशन और एक्सपीरियंस, कल्चर, सिनेमैटिक लैंग्वेज है।
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