अगर आप मराठी सिनेमा के दीवाने हैं या फिर ऐसी फिल्में पसंद करते हैं जो रोजमर्रा की जिंदगी में छिपे खतरे दिखाती हैं, तो आज हम बात करेंगे एक नई मराठी मूवी “अंबट शौकिन” की। मैं अरसलान हूं, पिछले ५ साल से फिल्म रिव्यू करता आ रहा हूं, और मैंने सैकड़ों क्षेत्रीय फिल्में देखी हैं। ये रिव्यू मेरे व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित है, जहां मैंने फिल्म को थिएटर में देखा और इसके संदेश पर गहराई से सोचा।
साइबर क्राइम जैसे मुद्दों पर फिल्में बनाना सराहनीय है, खासकर जब भारत में सेक्सटॉर्शन के केस हर साल हजारों में बढ़ रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक, 2023 में ही साइबर फ्रॉड के 50,000 से ज्यादा मामले दर्ज हुए थे, जिनमें सेक्सटॉर्शन एक बड़ा हिस्सा है। ये फिल्म इसी समस्या को छूती है, लेकिन क्या ये प्रभावी तरीके से कर पाती है? चलिए, स्टेप बाय स्टेप देखते हैं।

फिल्म की कहानी
अंबट शौकिन की कहानी तीन बेफिक्र दोस्तों- ललित, वरुण और रेड्डी के इर्द गिर्द घूमती है। ये तीनों बेरोजगार और बेढंगे तरीके से जिंदगी काट रहे हैं, लेकिन वरुण की एक नैतिक सलाह के बाद वे अपना कैफे खोलते हैं। सब कुछ ईमानदारी से चल रहा होता है,
तभी शाम को जान्हवी नाम की एक लड़की कैफे में आती है और बस तीनों ही उसके प्यार में पड़ जाते हैं, लेकिन कहानी यहां रुकती नहीं, एक ट्विस्ट आता है जहां चीजें वैसी नहीं लगतीं जैसी दिखती हैं। कुछ फोटोज, जान्हवी का असली मकसद और एक युवा लड़के की दर्दनाक कहानी तीनों दोस्तों की जिंदगी हिला देती है।
फिल्म का टाइटल “अंबट शौकिन” थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन ये जानबूझकर चुना गया है ताकि लोगों का ध्यान खींचे। असल में ये तीन दोस्तों की ऑनलाइन जाल में फंसने की यात्रा है, जहां वे अनजाने में एक साइबर क्राइम सिंडिकेट का सामना करते हैं और उसे नेस्तनाबूद करने का फैसला करते हैं।
निर्देशक निखिल वैरागर ने इसे एक नई नजरिए से पेश किया है, जहां सेक्सटॉर्शन जैसे गंभीर मुद्दे को कॉमेडी के जरिए छुआ गया है। डायलॉग और स्क्रीनप्ले अक्षय टांकसाले और अमित बेंद्रे ने लिखे हैं, जो फिल्म के दिल में सही जगह पर हैं। लेकिन सच कहूं तो, कहानी का फ्लो थोड़ा कच्चा लगता है।
पहले हाफ में कॉमेडी पर इतना फोकस है कि असली समस्या पर ध्यान कम जाता है जबकि दूसरा हाफ इतनी तेजी से भागता है कि कई सवाल अनसुलझे रह जाते हैं। अगर आपने “फुकरे” या “दिल चाहता है” जैसी दोस्ती वाली फिल्में देखी हैं, तो यहां का वाइब वैसा ही है लेकिन साइबर ट्विस्ट के साथ।

मुझे लगता है, फिल्म का ये अप्रोच अच्छा है क्योंकि सेक्सटॉर्शन आज के युवाओं की बड़ी समस्या है। ऑनलाइन स्कैम में लोग आसानी से फंस जाते हैं और ये फिल्म दिखाती है कि कैसे एक छोटी सी गलती बड़ी मुसीबत बन सकती है। लेकिन काश मेकर्स ने इसे और गहराई दी होती।
जैसे, जान्हवी का किरदार शुरुआत में रोमांटिक लगता है लेकिन बाद में उसकी सच्चाई सामने आती है जो पूरे प्लॉट को उलट देती है। तीन दोस्तों का फैसला सिंडिकेट को खत्म करने का एक प्रेरणादायक मोमेंट है, लेकिन ये इतने संयोगों पर टिका है कि रियल लगता नहीं। मसलन नए कैरेक्टर ऐसे आते हैं जैसे प्लॉट को सुलझाने के लिए ही बने हों, जो फिल्म को थोड़ा अव्यवस्थित बनाता है।
अभिनय और निर्देशन
अब बात करते हैं परफॉर्मेंस की, अक्षय टांकसाले और किरण गायकवाड़ ने कमाल का काम किया है – उनकी कॉमिक टाइमिंग और इमोशनल डेप्थ फिल्म को बचा लेती है। टांकसाले का किरदार खासतौर पर याद रहता है जहां वो बेफिक्र दोस्त से एक जिम्मेदार इंसान बनता है।
लेकिन बाकी एक्टर्स थोड़े कमजोर पड़ते हैं, कुछ ओवर-एक्टिंग करते हैं, कुछ कैजुअल लगते हैं और कुछ ऐसे अनपॉलिश्ड कि लगता है रिहर्सल की कमी है। जैसे मुख्य तीन दोस्तों में से एक-दो का अभिनय थोड़ा लाउड है, जो कॉमेडी को जबरदस्ती का बना देता है।

निर्देशन की बात करें तो निखिल वैरागर ने अच्छी कोशिश की है,फिल्म का मकसद साफ है – सेक्सटॉर्शन पर जागरूकता फैलाना। लेकिन एक्जीक्यूशन में कमी है। पहले हाफ इतना धीमा है कि आप सोचते रहते हैं कब असली कहानी शुरू होगी, और दूसरा हाफ इतना जल्दबाज कि कई लूज एंड्स बंधते नहीं।
ये लगता है जैसे फिल्म दोस्तों ने दोस्तों के लिए बनाई हो – पैशन तो है लेकिन प्रोफेशनल टच की कमी। मैंने कई इंडिपेंडेंट फिल्में रिव्यू की हैं, जैसे “कोर्ट” या “सैराट” और इनमें से ज्यादातर में एक्जीक्यूशन परफेक्ट होता है। यहां भी अगर थोड़ा और एडिटिंग होती, तो फिल्म ज्यादा प्रभावी बनती। फिर भी क्रेडिट जहां ड्यू है,टीम ने एक महत्वपूर्ण टॉपिक चुना है, जो आज के डिजिटल युग में बेहद जरूरी है।
मजबूत और कमजोर पक्ष:
फिल्म के पॉजिटिव्स की बात करें तो सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है इसका थीम। सेक्सटॉर्शन एक ऐसा अपराध है जो चुपके से लोगों की जिंदगी बर्बाद कर देता है, और ये फिल्म इसे हल्के फुल्के अंदाज में पेश करती है ताकि युवा आसानी से कनेक्ट कर सकें। कॉमेडी सीन मजेदार हैं, खासकर तीन दोस्तों की नोंक झोंक।
टाइटल का इस्तेमाल भी स्मार्ट है – ये raising eyebrows वाला एलिमेंट फिल्म को यादगार बनाता है। साथ ही, ये दिखाती है कि कैसे छोटे शहरों के लड़के ऑनलाइन ट्रैप में फंसते हैं और बाहर निकलते हैं, जो एक नई दिशा देता है।
लेकिन कमियां भी कम नहीं। प्लॉट में बहुत सारे कोइंसिडेंस हैं – लीड कैरेक्टर्स हमेशा सही जगह पर सही समय पर पहुंच जाते हैं, जो रियलिटी से दूर लगता है। कॉमेडी पर इतना जोर कि असली इश्यू बैकसीट पर चला जाता है। दूसरा हाफ हड़बड़ी में खत्म होता है, जैसे मेकर्स को टाइम की कमी हो गई हो।
एक्टिंग में असमानता है, और ओवरऑल ये एमेच्योर लगती है। अगर आप सस्पेंस थ्रिलर की उम्मीद करेंगे, तो निराशा होगी क्योंकि ये ज्यादा एक कैजुअल वॉच है। तुलना करें तो, हिंदी में “पिंक” या “अंधाधुन” जैसी फिल्में सोशल इश्यू को बेहतर तरीके से हैंडल करती हैं। फिर भी, प्रयास के लिए पूरे नंबर – पैशन दिखता है, बस एक्जीक्यूशन आधा रह गया।
या Digital युगात
— मराठी सिनेयुग (@MarathiCineyug) June 13, 2025
तुमच्या आयुष्याची वाट लावण्यासाठी एक फोन सुद्धा पुरेसा आहे.
उल्लू नाही, हुशार व्हा
फसण्याआधी आंबट शौकीन पहा
आंबट शौकीन
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निष्कर्ष: देखनी चाहिए या नहीं?
कुल मिलाकर अंबट शौकिन एक ऐसी फिल्म है जो अच्छे इरादों से बनी है, लेकिन रास्ते में ठोकर खाती है। अगर आप दोस्तों के साथ हल्की फुल्की मस्ती वाली मूवी देखना चाहते हैं, जिसमें थोड़ा सा मैसेज भी हो, तो ये ठीक रहेगी। लेकिन अगर आप गहन सस्पेंस या परफेक्ट एक्जीक्यूशन चाहते हैं, तो शायद स्किप कर दें। मेरी रेटिंग होगी 7/10 लेकिन फाइनल प्रोडक्ट के लिए आधा। साइबर क्राइम पर जागरूक रहें, दोस्तों – ये फिल्म याद दिलाती है कि ऑनलाइन दुनिया में सावधानी जरूरी है।
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