Haan Main Pagal Haan review hindi :मैं पागल हां पंजाबी फिल्म को केबल वन के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ किया गया है। ये सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन ही नहीं कराती बल्कि उनमें रोमांच और उत्साह को भी उत्पन्न करने का काम करती है।
झूठ, फरेब, रहस्य से पर्दा उठाती इस फिल्म का निर्देशन किया है सुमित भट्ट और अमरप्रीत जी.एस. छाबड़ा ने। इस पंजाबी फिल्म का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है कि यह पंजाबी में होकर भी हिंदी दर्शकों को आसानी से समझ आएगी शायद यही वजह होगी के इसे हिंदी में डब्ड नहीं किया गया । सायकोलॉजिकल ड्रामा और मिस्ट्री से भरी फिल्म कैसी है, क्या यह आपका समय डिजर्व करती है या नहीं आइए जानते हैं।
कहानी
कहानी की शुरुआत “हां मैं हूँ पागल हूँ” जैसे भावात्मक गाने से होती है, जहाँ पर हिमांशी खुराना पागलखाने में कैद एक लड़के से मिलने आती है। यहाँ से कहानी पास्ट में चली जाती है जहाँ एक रिटायर मेजर अपने घर में बारिश की बूँदों के साथ वाइन का मज़ा ले रहा है।तभी अचानक से बाहर दंगे होने लगते हैं। दंगों में फँसे लोग बारी-बारी से मेजर साहब के घर में शरण लेते हैं।
मेजर साहब थोड़े ठरकी किस्म के इंसान हैं। पहले तो वो अपने घर में लोगों को रुकने से मना करते हैं पर जब देखते हैं कि सुन्दर सुन्दर लड़कियाँ भी शरण लेना चाहती हैं तो वे राज़ी हो जाते हैं। इस नए साल की रात में उस घर में टोटल 10 लोग शरण लेते हैं। फिल्म मिस्टीरियस तब लगती है जब इसी घर में पिंक कलर के कोट में एक छोटा लड़का दिखता है।
यह सिर्फ मनोरंजन ही नहीं कराती बल्कि दर्शकों के भीतर कुछ गहरे राज़ भी छोड़ कर जाती है। कहानी अपना रंग तब बदलती है जब मेजर के घर में रुके सभी लोगों का एक-एक करके मर्डर होने लगता है। अब यह मर्डर कौन कर रहा है और क्यों, मर्डर वाली जगह पर बैठा हुआ पिंक कोट में बच्चा, ये सब जानने के लिए आपको केबल वन पर इसे देखना होगा।

प्रदर्शन
वैसे तो फिल्म में सभी कलाकारों ने अच्छा काम किया है पर इनमें से जिनका सबसे अच्छा काम है वो है हिमांशी खुराना। इन्होने अपने अभिनय और फेस इम्प्रेशन से अपने कैरेक्टर में जान फूँक दी हैं। प्रीत ग्रेवाल का कैरेक्टर कुछ इस तरह से गढ़ा गया है जिसे फिल्म देखने के बाद भी याद किया जा सके । स्वतंत्र भारत और अजय जेठी का काम भी यहाँ ठीक-ठाक ही है।
टेक्निकल पहलू
इस तरह की फिल्मों में जिस तरह की डार्क थीम का इस्तेमाल किया जाता है, शूटिंग के लिए शिमला से बढ़कर कोई और जगह हो ही नहीं सकती। अब शिमला है तो सिनेमैटोग्राफी तो वैसे ही अच्छी होगी। यहाँ सभी विज़ुअल अच्छे हैं। कैमरा वर्क, कलर ग्रेडिंग, बीजीएम ठीक-ठाक है। वीएफएक्स का इस्तेमाल कम है पर जितना भी है ठीक है। ओवरऑल कहानी को देखकर लगता है कि कम बजट में एक अच्छी फिल्म बनाकर दर्शकों के सामने पेश की गई है।
म्यूज़िक
एक अच्छा म्यूज़िक वो होता है जो कानों से होकर सीधे आत्मा को छू ले। कहानी का म्यूज़िक और गाने इसे आगे बढ़ाने का काम करते हैं। यहाँ कहानी में संगीत नहीं बल्कि संगीत में कहानी लगती है।
निगेटिव पहलू
कहीं-कहीं पर यह थोड़ी स्लो फील कराती है। घर के अंदर रुके सभी दस लोगों के कुछ न कुछ राज़ हैं अगर उन राज़ को थोड़ा और उजागर किया जाता तो अच्छा रहता । स्क्रीनप्ले में थोड़ा सा कही कही कमज़ोर सा लगने लगता है पर फिर तेज़ी से कहानी चलने लगती है । निर्देशन थोड़ा और अच्छे से किया जा सकता था, जिससे कहानी और उभरकर सामने आती।
निष्कर्ष
अगर आपको निर्देशक अब्बास मस्तान की सस्पेंस थ्रिलर फिल्में देखना पसंद है, तब आपको ये फिल्म काफी अच्छी लगेगी। एक के बाद एक ट्विस्ट और टर्न, रहस्य जो एक दर्शक के तौर पर हमारे दिमाग को कसरत कराने पर मजबूर करते हैं। मेरी तरफ से इसे 5 में से 3 स्टार की रेटिंग दी जाती है, जो पूरी फैमिली के साथ बैठकर देखी जा सकती है।
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