क्या आपने कभी ऐसी फिल्म देखी है जो इतिहास की धूल भरी किताबों को ज़िंदा कर दे? आज हम बात कर रहे हैं कन्नड़ सिनेमा की फिल्म “स्वप्न मंटपा” की। ये 2023 में रिलीज़ हुई एक अनोखी मूवी है, जो रंजनी राघवन जैसे कलाकारों से सजी है। ये फिल्म न सिर्फ मनोरंजन देती है, बल्कि महिलाओं की सदियों पुरानी लड़ाई और सांस्कृतिक विरासत को बचाने की बात करती है। चलिए इसके रिव्यू से समझते हैं।
फिल्म की कहानी:
कहानी शुरू होती है एक हाई स्कूल टीचर मंजुला से, जो रंजनी राघवन ने निभाई है। वो एक दूर दराज के गांव में आती है और वहां के पुराने खंडहर “स्वप्न मंटपा” की रहस्यमयी दुनिया में खो जाती है, वह उसके पापा के दोस्त सिदप्पा के घर ठहरती है, जहां वो उनके बेटे शिवकुमार से मिलती है, विजय राघवेंद्र का रोल।
ಸ್ಯಾಂಡಲ್ವುಡ್ನಲ್ಲಿ ಬಿಡುಗಡೆಯಾಗಿರುವ ಸ್ವಪ್ನಮಂಟಪ, ಬಂದೂಕು, ಸು from ಸೋ ಸಿನಿಮಾಗಳು ಜನಮನ ಗೆದ್ದು ಯಶಸ್ವಿಯಾಗಲಿ! 💥#SuFromSo #Bandook #SwapnaMantapa #SandalwoodOnline #JpThuminad #VijayRaghavendra@RajbShettyOMK @lighterbuddha @ravichandra_aj pic.twitter.com/OhqWZKHjUU
— Sandalwood Online (@SandalwoodOnlin) July 25, 2025
शिवकुमार उसे मंटपा की कहानी सुनाता है, राजा चंदराया उनकी दो पत्नियां नागलादेवी और मदनिके और बेटी मदालसे की। ये फ्लैशबैक हिस्से थिएटर जैसे लगते हैं स्टेज ड्रामा स्टाइल में, पुराने आर्ट सिनेमा की याद दिलाते हुए। मंजुला खुद को मदनिके के रूप में कल्पना करने लगती है और सोचती है कि सदियों बाद भी महिलाओं की जिंदगी वैसी ही है जैसे संघर्ष और समाज की बंदिशें।
मैंने इंटरनेट पर पढ़ा कि ये कहानी कर्नाटक के असली इतिहास से प्रेरित है, जैसे होयसल साम्राज्य के मंदिरों से। फिल्म में ट्विस्ट आता है जब राजकुमारी नाम की एक मानसिक रूप से परेशान औरत और भीमाराजु, जो साइट को बेचना चाहता है, की एंट्री होती है। मंजुला और शिवकुमार मिलकर इसे बचाने की जंग लड़ते हैं। रोमांस भी धीरे धीरे पनपता है, जो कहानी को और दिलचस्प बनाता है।
अभिनय और निर्देशन:
बात करें एक्टिंग की, तो रंजनी राघवन ने मंजुला के रोल को इतना रियल बना दिया है जोकि देखने में एक दम असली किरदार लगती हैं। विजय राघवेंद्र शिवकुमार के रूप में कमाल हैं वो कहानी सुनाते वक्त एक दम असली लगते हैं।

सुंदर राज, अंबरीश सरंगी और रंजिनी गौड़ा जैसे सपोर्टिंग कास्ट भी ठीक ठाक हैं, खासकर राजकुमारी का रोल इमोशनल डेप्थ देता है। इंटरनेट से पता चला कि ये फिल्म एच.एस.वेंकटेश द्वारा निर्देशित है, जो पुरानी कन्नड़ फिल्मों की स्टाइल को मॉडर्न टच देते हैं।
फ्लैशबैक में स्टाइलिश डायलॉग और थिएट्रिकल टेलिंग है, जो कभी कभी इतिहास की क्लास जैसा लगता है, लेकिन यही इस फिल्म की यूएसपी है। अगर आप फास्ट पेस्ड एक्शन फिल्म देखना पसंद करते हैं, तो ये थोड़ी स्लो लग सकती है। पर पुराने आर्ट सिनेमा के फैन के लिए ये एक ट्रीट है।
सामाजिक संदेश:
फिल्म का दिल है इसका मैसेज, ये बताती है कि कैसे महिलाओं की स्थिति सदियों से नहीं बदली हैं, तब भी उनपर दबाव था और आज भी है। साथ ही इसकी कहानी सांस्कृतिक साइट्स को बचाने की जरूरत पर भी जोर देती है। जैसे कुछ लोग डेवलपर्स रिजॉर्ट बनाने के चक्कर में इतिहास मिटा देते हैं, ये फिल्म उस पर तंज करती है। मैंने रिसर्च में पाया कि कर्नाटक में कई ऐसी जगहें हैं जैसे बेलूर के मंदिर, जो इसी तरह के खतरे में हैं।
हालांकि स्क्रिप्ट थोड़ी पुरानी लगती है, डायलॉग कभी कभी खींचे हुए लगते है। मॉडर्न ऑडियंस को भले ही यह थोड़ी चुनौतीपूर्ण लग सकती है लेकिन इसका दिल सही जगह पर है। अगर आप धीमी फिल्में देखना पसंद करते हैं, तो ये मूवी आपके लिए है।
निष्कर्ष:
कुल मिलाकर “स्वप्न मंटपा” एक विचारोत्तेजक फिल्म है जो इतिहास, रोमांस और सोशल इश्यूज को मिक्स करती है। मेरी राय में, ये 7/10 रेटिंग डिजर्व करती है खासकर कन्नड़ सिनेमा के दीवानों के लिए। अगर आप विरासत और महिलाओं के मुद्दों पर कुछ गहरा देखना चाहते हैं तो इसे जरूर ट्राई करें।
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