Janaki V Vs State of Kerala review hindi:मनोज बाजपेई की सिर्फ एक बंदा काफी है, अमिताभ बच्चन की पिंक, अरशद वारसी की जॉली एलएलबी और सनी देओल की दामिनी जैसी बॉलीवुड कोर्ट रूम ड्रामा फिल्में तो बहुत देखी होंगी। अब कुछ इसी तरह की मलयालम फिल्म इंडस्ट्री की ओर से जानकी वर्सेस स्टेट ऑफ केरला नाम की फिल्म रिलीज हुई है। फिल्म में लीड रोल में सुरेश गोपी और अनुपमा परमेश्वरन दिखाई देते हैं। इसका निर्देशन प्रवीण नारायण ने किया है और इन्हीं के द्वारा इस फिल्म को लिखा भी गया है।
यह फिल्म एक यौन उत्पीड़न से पीड़ित महिला को न्याय दिलाने की कहानी है। शायद आप लोग इस बात से अनजान होंगे कि फिल्म के नाम के आगे जानकी लगा होने की वजह से सेंसर बोर्ड ने इस पर आपत्ति दर्ज कराई थी, क्योंकि हिंदू धर्म में जानकी, सीता मां का नाम है। चूंकि कहानी जानकी की है और यह यौन उत्पीड़न से पीड़ित महिला की कहानी है इस बात को लेकर सेंसर बोर्ड का मानना था कि फिल्म का मूल शीर्षक धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकता है। इसलिए, रिलीज से पहले शीर्षक में मामूली बदलाव करने का सुझाव दिया गया ताकि किसी भी तरह का विवाद न हो।
इसी वजह से फिल्म का नाम जानकी वी बनाम स्टेट ऑफ केरला रखा गया और अब यह फाइनली 17 जुलाई 2025 को सिनेमाघरों में रिलीज कर दी गई है वह भी सिर्फ मलयालम भाषा के साथ। इस फिल्म को हिंदी भाषा में रिलीज नहीं किया गया है, पर इसका ट्रेलर हिंदी में लॉन्च किया गया था। हो सकता है ओटीटी पर यह हमें हिंदी भाषा में देखने को मिले।
कहानी
यह 2 घंटे 34 मिनट की कोर्ट रूम ड्रामा फिल्म है। कहानी जानकी नाम की एक लड़की से शुरू होती है जो कॉलेज की पढ़ाई के बाद अपने घर वापस छुट्टियां बिताने आ रही होती है। पर इसी बीच उसके साथ कुछ ऐसी अनहोनी घटना घट जाती है, जो उसकी पूरी जिंदगी को बर्बाद कर देती है। भगवान ना करें कि ऐसी घटना कभी किसी लड़की के सामने आए। इस घटना के बाद वह पूरी तरह से टूट जाती है। उसने अपनी जिंदगी में जो भी सपने सजाए होते हैं, वे एक पल में बिखर जाते हैं। पर अपने आत्मविश्वास के बल पर हार न मानते हुए वह कोर्ट का दरवाजा खटखटाती है। खुद पर हुए अन्याय के लिए न्याय पाने के लिए जानकी डेविड नाम के वकील से मिलती है। अब क्या डेविड जानकी को न्याय दिलाने में उसकी मदद करेंगे वह कौन सा हादसा है जो जानकी के साथ हो जाता है? जानकी को न्याय मिलता है या नहीं यह सब आपको फिल्म देखकर ही पता लगाना होगा।
पॉजिटिव पॉइंट
निर्देशक प्रवीण नारायण एक ऐसी कहानी को यहां पेश करते हैं जिसे देखकर किसी की भी आंखें नम हो जाएंगी फिर चाहे कोई कितना भी कठोर दिल क्यों न हो। जिस तरह से कहानी आगे बढ़ती है वह पूरी तरह से दर्शकों को बांधने में कामयाब रहती है। इसमें कुछ सीन ऐसे भी दिखाए गए हैं जिनको देखकर धड़कन रुक जाती है। ट्रेलर देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि यहां कुछ इस तरह का देखने को मिलेगा पर फिल्म देखने के बाद एक शॉकिंग एक्सपीरियंस मिला। अगर इसे हिंदी डब्ड भाषा में रिलीज किया जाता, तब हिंदी पट्टी में इसे खूब सराहना मिलती।
निष्कर्ष
कोर्ट रूम ड्रामा पसंद करने वालों के लिए यह फिल्म बेकार से कम नहीं है। फिलहाल यह मलयालम भाषा में सिनेमाघरों में लगी हुई है। हिंदी भाषी लोगों को ओटीटी रिलीज तक इंतजार करना होगा। अनुपमा परमेश्वरन और सुरेश गोपी का काम काबिले तारीफ है। इनकी एक्टिंग की जितनी भी सराहना की जाए, बहुत कम है। मेरी तरफ से इस फिल्म को दिए जाते हैं पांच में से 3.5।
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