Badava Review:क्या यह फिल्म आपके समय के लायक है?

Badava Review

Badava Review in hindi:7 मार्च 2025 के दिन तमिल सिनेमा ने कई फिल्मों को दर्शकों के सामने पेश किया। लेकिन इनमें से एक ऐसी फिल्म जो अपनी कॉमेडी और ड्रामा के मिश्रण से लोगों का अपनी ओर ध्यान खींच रही है,वह है “बडावा“। इस फिल्म का निर्देशन “केवी नंदा’ ने किया है जिन्होंने इससे पहले “राना” और “पोगारू” जैसी फिल्में बनाई हैं।

फिल्म के मुख्य किरदारों में विमल,सूरी,श्रीरिता राव,रामचंद्र राजू जोकि फिल्म ‘केजीएफ’ में राम किरदार के नाम से मशहूर हैं,और देवदर्शिनी जैसे कलाकार शामिल हैं। यह फिल्म 2 घंटे 31 मिनट की है और यह एक्शन ड्रामा और कॉमेडी की श्रेणी में आती है। तो चलिए जानते हैं इसकी कहानी और करते हैं इसका पूरा रिव्यू।

कहानी:

फिल्म की कहानी तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के पास बसे एक छोटे से गाँव से शुरू होती है। यहाँ दो मुख्य किरदार शिवम (विमल) और यूरपू (सूरी) की एंट्री होती है। ये दोनों शराब के आदी हैं और नशे में धुत होकर गाँववालों को तंग करते हैं। न तो ये कोई काम करते हैं और न ही अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाते हैं।

इनकी हरकतों से परेशान होकर जब गाँववाले सरपंच के पास शिकायत लेकर जाते हैं। सरपंच एक सख्त फैसला लेता है और शिवम को मलेशिया भेजने की व्यवस्था कर दी जाती है,ताकि वह गाँव से दूर रहे और अपने परिवार को संभाल सके। शिवम के जाने के बाद गाँव में शांति छा जाती है लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आता है,

जब वह अचानक अपने गांव वापस लौटता है। इस बार वह पहले जैसा नहीं है अब वह पूरी तरह बदल चुका है,पर क्या बदलाव आया है यह देखने लायक है। लोग उसे अब सम्मान की नजर से देखते हैं। पहले जहाँ वह शराब के नशे में लोगों को परेशान करता था,अब अपनी हरकतों से उनका मनोरंजन करता है।

फिल्म में अन्य किरदार भी अहम रोल निभाते हैं जैसे श्रीरिता राव (हीरोइन) देवदर्शिनी (शिवम की बहन) और रामचंद्र राजू जोकि ईंट भट्ठा का मालिक है और यही इस कहानी का विलेन भी है।

आगे की कहानी इस बात पर केंद्रित है कि एक शराबी जो पहले खुद एक तरह का विलन था अब बदलकर गाँव लौटता है और ईंट भट्ठा मालिक जैसे असली विलन से कैसे टक्कर लेता है। यह सब जानने के लिए आपको फिल्म बडावा देखनी होगी।

नेगेटिव पहलू:

फिल्म में कई कमियाँ हैं जिनमें सबसे बड़ी है इसकी कहानी में तर्क का अभाव। कई घटनाएँ ऐसी दिखाई गई हैं जिनके पीछे का कारण स्पष्ट नहीं किया गया है। इस वजह से दर्शक कई बार कहानी से जुड़ाव महसूस नहीं कर पाते। कुछ सीन बेवजह लंबे खींचे गए हैं जो फिल्म को थोड़ा उबाऊ बनाते हैं।

इसके अलावा फिल्म में कई गाने हैं,जिनकी संख्या और लंबाई को कम किया जा सकता था। यह कोई म्यूजिकल फिल्म नहीं है बल्कि कॉमेडी और ड्रामा पर आधारित है तो गानों का ज्यादा होना खलता है।

पॉजिटिव पहलू:

फिल्म में गाँव की जिंदगी को जिस तरह दिखाया गया है वह सराहनीय है। हर किरदार अपने रोल में फिट बैठता है और उसे बखूबी निभाता है। खास तौर पर रामचंद्र राजू का ईंट भट्ठा मालिक का किरदार,जो अपनी खलनायकी से डर पैदा करता है प्रभावशाली है।

विमल और सूरी की जोड़ी कॉमेडी के साथ साथ भावनात्मक क्षणों को भी अच्छे से पेश करती है। मलेशिया से आए शिवम के दोस्त का किरदार भी कहानी को पकड़ प्रदान करता है। इसके अलावा फिल्म का सामाजिक संदेश खेती और गाँव की जमीन के महत्व को उजागर करना इसे खास बनाता है।

निष्कर्ष:

अगर इस वीकेंड आप हॉरर या रहस्यमयी फिल्मों से बचना चाहते हैं और कुछ सिंपल और मनोरंजक देखने का मन है तो “बडावा” एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इसकी पैरेंटल गाइडलाइन की बात करें तो इसे परिवार के साथ भी देखा जा सकता है। हालाँकि फिल्म की लंबाई शुरू में थोड़ी ज्यादा लगती है लेकिन जब यह कहानी आगे बढ़ती है यह ठीक लगने लगती है। यह कोई बहुत यादगार फिल्म नहीं है पर एक बार देखकर हँसने और मनोरंजन करने के लिए यह ठीक है।

फिल्मीड्रिप रेटिंग:2/5

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  • movie reviewer

    हेलो दोस्तों मेरा नाम अरसलान खान है मैने अपनी ब्लॉगिंग की शुरवात न्यूज़ वेबसाइट अमर उजाला लखनऊ से की थी अभी के टाइम पर मै कई मीडिया संस्थानों के साथ जुड़ा हुआ हूँ और अपनी सेवाएं उन्हें प्रदान कर रहा हूँ उनमे से एक फिल्मीड्रीप है मै हिंदी इंग्लिश तमिल तेलगु मलयालम फिल्मो का रिव्यु लिखता हूँ । आशा करता हूँ के मेरे द्वारा दिए गए रिव्यु से आप सभी लोग संतुष्ट होते होंगे धन्यवाद।

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